विज्ञान का एक शब्द है गुरुत्व, जिसका शिक्षक दिवस से गहरा संबंध है। इसी से गुरुत्वाकर्षण बना है। संसार के किसी भी पिंड में एक बल होता है। पृथ्वी की बात करें तो उसके बल को गुरुत्वाकर्षण बल कहते हैं। इसी बल के कारण हम पृथ्वी पर टिके हैं। यही बल न हो तो हम अंतरिक्ष में विलीन हो जाएंगे। ठीक उसी प्रकार गुरु यानी शिक्षक हमें संसार को समझने के लिए तैयार करते हैं। उनकी शिक्षाओं के आधार पर ही हम देश दुनिया की तमाम जानकारी पाते हैं।
यह आकर्षण बल व्यक्तित्व में भी पाया जाता है। इसे आप महसूस भी करते होंगे। आखिर क्या कारण है कि हम किसी व्यक्ति विशेष के फैन हो जाते हैं। कोई न कोई हमें आकर्षित करता है तो यह भी होता है कि कोई न कोई हमारी ओर आकर्षित होता है। आकर्षण का हिसाब किताब इसी आकर्षण बल की मात्रा पर निर्भर करता है।
कोई भी पिंड जितना बड़ा और भारी होता है, उसी अनुपात में उसका गुरुत्वाकर्षण बल कम या ज्यादा होता है। सौर मंडल की बात करें तो गुरु यानी बृहस्पति ग्रह का गुरुत्वाकर्षण बल सबसे अधिक है। क्योंकि यह ग्रह सौर मंडल के सभी ग्रहों से भारी है। इसी भारीपन को गुरुता भी कहते हैं। हल्की वस्तुएं थोड़ी सी हवा चलने पर उड़ने लगती हैं, जबकि भारी वस्तुएं अपने स्थान पर टिकी रहती हैं।
शिक्षक हमारी गुरुता को बढ़ाते हैं। एक पढ़े लिखे व्यक्ति के सामने कोई भी अनपढ़ व्यक्ति हल्कापन महसूस करता है। शिक्षकों में भी गुरुता की मात्रा उनके व्यक्तित्व और आभामंडल के अनुपात में कम या अधिक होती है। इस दृष्टि से डॉ. राधाकृष्णन महान व्यक्तित्व के धनी थे। व्यक्तित्व के आधार पर ही उन्हें भारत रत्न की उपाधि से नवाजा गया। उन्हीं के जन्म दिवस को हम शिक्षक दिवस के रूप में मनाते हैं।
शिक्षा का प्रभाव जहां प्रत्येक व्यक्ति पर निश्चित रूप से पड़ता है, वहीं शैक्षिक संस्थान की गुणवत्ता भी अपना प्रभाव छोड़ती है। क्रिश्चियन संस्थाओं की ओर से उस समय पश्चिमी जीवन मूल्यों को विद्यार्थियों के भीतर गहराई तक स्थापित किया जाता था।
यही कारण है कि क्रिश्चियन संस्थाओं में अध्ययन करते हुए राधाकृष्णन के जीवन में उच्च गुण समाहित हो गए। लेकिन उनमें एक अन्य परिवर्तन भी आया जो कि क्रिश्चियन संस्थाओं के कारण ही था। कुछ लोग हिन्दुत्ववादी विचारों को हेय दृष्टि से देखते थे और उनकी आलोचना करते थे।
उनकी आलोचना को डॉ. राधाकृष्णन ने चुनौती की तरह लिया और हिन्दू शास्त्रों का गहरा अध्ययन शुरू कर दिया। वह यह जानना चाहते थे कि वस्तुतः किस संस्कृति के विचारों में चेतनता है और किस संस्कृति के विचारों में जड़ता है? तब स्वाभाविक अंतर्प्रज्ञा से इस बात पर दृढ़ता से विश्वास करना आरम्भ कर दिया कि भारत के दूरस्थ स्थानों पर रहने वाले ग़रीब और अनपढ़ व्यक्ति भी प्राचीन सत्य को जानते थे।
इस कारण राधाकृष्णन ने तुलनात्मक रूप से यह जान लिया कि भारतीय आध्यात्म काफ़ी समृद्ध है और क्रिश्चियन मिशनरियों की ओर से हिन्दुत्व की आलोचनाएं निराधार हैं। इससे इन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि भारतीय संस्कृति धर्म, ज्ञान और सत्य पर आधारित है जो प्राणी को जीवन का सच्चा सन्देश देती है। अपनी हिंदू व्यू आफ लाइफ पुस्तक में डॉ. राधाकृष्णन ने अपने विचारों की एक अमिट छाप छोड़ी। इस विषय को आगे बढ़ाने के लिए अगली चर्चा फिर कभी।