
सत्य ऋषि
वेदों की कूट भाषा को समझना आसान नहीं है। इसलिए कुछ भाष्यकारों ने वेदों के मंत्रों के भाष्य लिखे और उन्हें जन सामान्य को समझाने का प्रयास किया। वेदों में किसी प्रकार की मिलावट न हो, इसके लिए ऋषियों ने शब्दों और अक्षरों को गिन कर लिख दिया था। कात्यायन प्रभृति ऋषियों की अनुक्रमणी के अनुसार ऋचाओं की संख्या 10 हजार 580, शब्दों की संख्या एक लाख 53 हजार 526 है।
शौनककृत अनुक्रमणी के अनुसार चार लाख 32 हजार अक्षर हैं। शतपथ ब्राह्मण जैसे ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि प्रजापति कृत अक्षरों की संख्या 12 हजार बृहती थी। अर्थात 12000 गुणा 36 यानि चार लाख 32 हजार अक्षर। आज जो शाकल संहिता के रूप में ऋग्वेद उपलब्ध है उनमें केवल 10 हजार 552 ऋचाएं हैं।
सबसे पुराना भाष्य (यानि टीका, समीक्षा) किसने लिखी, यह कहना मुश्किल है। सबसे प्रसिद्ध उपलब्द्ध प्राचीन भाष्य आचार्य सायण का है। आचार्य सायण से पूर्व के भाष्यकार अधिक गूढ़ भाष्य बना गए थे। यास्क ने ईसा पूर्व पांचवीं सदी में (अनुमानित) एक कोष लिखा था, जिसमें वैदिक शब्दों के अर्थ दिए गए थे। लेकिन सायण ही एक ऐसे भाष्यकार हैं जिनके चारों वेदों के भाष्य मिलते हैं। ऋग्वेद के परिप्रेक्ष्य में क्रम से इन भाष्यकारों ने ऋग्वेद की टीका लिखी।
स्कन्द स्वामी: ऐतिहासिक ग्रंथों के अनुसार वेदों का अर्थ समझने और समझाने की क्रिया कुमारिल-शंकर के समय शुरू हुई। स्कन्द स्वामी का काल भी यही माना जाता है 625 ईसवी के आस पास। ऐसी प्रसिद्धि है कि शतपथ ब्राह्मण के भाष्यकार हरिस्वामी (638 ईस्वी) को स्कन्द स्वामी ने अपना भाष्य पढ़ाया था।
ऋग्वेद भाष्य के प्रथमाष्टक के अन्त में प्राप्त श्लोक से पता चलता है कि स्कन्द स्वामी गुजरात के वलभी के रहने वाले थे। इसमें प्रत्येक सूक्त के आरंभ में उस सूक्त के ऋषि-देवता और छन्द का उल्लेख किया गया है। साथ ही अन्य ग्रंथों से उद्धरण प्रस्तुत किया गया है। ऐसा माना जाता है कि स्क्न्द स्वामी ने प्रथम चार मंडल पर ही अपना भाष्य लिखा था, शेष भाग नारायण और उद्गीथ ने मिलकर पूरा किया था।
माधव भट्ट: प्रसिद्ध भाष्यकारों में माधव नाम के चार भाष्यकार हुए हैं। एक सामवेद भाष्यकार के रूप में ज्ञात हैं तो शेष तीन ऋक् के नाम से। लेकिन इन तीनों को सटीक पहचानना ऐतिहासिक रूप से संभव न हो पाया है। एक तो आचार्य सायण खुद हैं जिन्होंने अपने बड़े भाई माधव से प्रेरणा लेकर भाष्य लिखा और इसका नाम माधवीय भाष्य रखा।
कुछ विद्वान वेंकट माधव को ही माधव समझते हैं पर ऐसा होना मुश्किल लगता है। वेंकट माधव नामक भाष्यकार की जो आंशिक ऋग्टीका मिलती है उससे प्रतीत होता है कि इनका वेद ज्ञान उच्च कोटि का था। इनके भाष्य का प्रभाव वेंकट माधव और स्कन्द स्वामी तक पर मिलता है। इससे यह भी प्रतीत होता है कि इनका काल स्कन्द स्वामी से भी पहले था।
वेंकट माधव: इनका लिखा भाष्य बहुत संक्षिप्त है। इसमें न कोई व्याकरण संबंधी टिप्पणी है और न ही अन्य कोई टिप्पणी। इसमें एक विशेष बात यह है कि ब्राहमण ग्रंथों से सुन्दर रीति से प्रस्तुत प्रमाण। धानुष्कयज्वा: विक्रम की 16वीं शती से पूर्व वेद् भाष्यकार धानुष्कयज्वा का उल्लेख मिलता है जिन्होंने तीन वेदों के भाष्य लिखे।
आनन्दतीर्थ: चौदहवीं सदी के मध्य में वैष्णवाचार्य आन्नदतीर्थ जी ने ऋग्वेद के कुछ मंत्रों पर अपना भाष्य लिखा है। आत्मानन्द: ऋग्वेद भाष्य जहाँ सर्वदा यज्ञपरक और देवपरक मिलते हैं, इनके द्वारा लिखा भाष्य आध्यात्मिक लगता है।
सायण: ये मध्यकाल का लिखा सबसे विश्वसनीय, संपूर्ण और प्रभावकारी भाष्य है। विजयनगर के महाराज बुक्का (वुक्काराय) ने वेदों के भाष्य का कार्य अपने आध्यात्मिक गुरु और राजनीतिज्ञ अमात्य माधवाचार्य को सौंपा था।
पमन्चु इस वृहत कार्य को छोड़कर उन्होंने अपने छोटे भाई सायण को ये दायित्व सौंप दिया। उन्होंने अपने विशाल ज्ञानकोश से इस टीका का न केवल सम्पादन किया बल्कि 24 वर्षों तक सेनापतित्व का दायित्व भी निभाया।
आधुनिक काल में ऋग्वेद को समझने के लिए महर्षि दयानन्द सरस्वती ने “ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका” की रचना की। उस भाष्य का फिर आगे सरल संस्कृत एवं हिन्दी में अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती ने किया।
इसी प्रकार स्वामी जी ने यजुर्वेद का भी भाष्य लिखा। उन्होने अंधविश्वास मिटाने के लिए और सत्य विद्या को जन जन तक पहुंचाने के लिए हिन्दी में “सत्यार्थ प्रकाश” नामक ग्रंथ की रचना की और आर्य समाज संस्था की स्थापना की।