न्यूज डेस्क, नई दिल्ली। एक ऐसी पोस्ट वायरल हो रही है जिसमें लिखा है कि लोगों की मौत कोरोना वायरस से नहीं, बल्कि ऐमप्लीफाईड ग्लोबल 5G इलैक्ट्रोमैगनेटिक रेडिएशन ज़हर की वजह से हो रही है। यह दावा भ्रामक बताया जा रहा है कि कोविड—19 वायरस नहीं, बैक्टीरिया है। एक पड़ताल में सच कुछ और बताया जा रहा है।
इस वायरल मेसेज के दूसरे दावे को भी झूठा बताया गया है। “इटली में यह ऑटोप्सी वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) के कानून की अवज्ञा करते हुए किया गया है। डब्ल्यूएचओ कोरोना से मरने वालों के शवों की ऑटोप्सी की इजाजत नहीं देता, ताकि यह न पता चल जाए कि यह वायरस नहीं, बल्कि बैक्टीरिया है।”
सच्चाई यह बताई जा रही है कि इस दावे की पड़ताल में पाया गया कि WHO का ऐसा कोई कानून नहीं है, जिसमें कोरोना से मरने पर शव परीक्षण करने से रोका जाता हो। हालांकि, डब्ल्यूएचओ की ओर से जारी गाइडलाइंस में यह जरूर बताया गया है कि कोविड19 से मरने वालों के शवों को किस तरह ट्रीट किया जाए, ताकि संक्रमण फैलने से रोका जा सके। इसमें शव को पैक करने का तरीका भी बताया गया है।
वायरल पोस्ट को हम ज्यों का त्यों यहां दे रहे हैं—इटली विश्व का पहला देश बन गया है जिसने एक कोविड-19 से मृत शरीर पर अटोप्सी (पोस्टमार्टम) किया और एक व्यापक जांच करने के बाद पता लगाया है कि वायरस के रूप में कोविड-19 मौजूद नहीं है, बल्कि यह सब एक बहुत बड़ा ग्लोबल घोटाला है।
लोग असल में “ऐमप्लीफाइड ग्लोबल 5G इलैक्ट्रोमैगनेटिक रेडिएशन (ज़हर)” के कारण मर रहे हैं। इटली के डॉक्टरों ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के कानून का उल्लंघन किया है, जो कि करोना वायरस से मरने वाले लोगों के मृत शरीर पर आटोप्सी (पोस्टमार्टम) करने की आज्ञा नहीं देता। ताकि किसी तरह की वैज्ञानिक खोज व पड़ताल के बाद ये पता न लगाया जा सके कि यह एक वायरस नहीं, बल्कि एक बैक्टीरिया है जो मौत का कारण बनता है।
इसकी वजह से नसों में ख़ून की गांठें बन जाती हैं। यानी इस बैक्टीरिया के कारण ख़ून नसों और नाड़ियों में जम जाता है और यही मरीज़ की मौत का कारण बन जाता है। इटली ने इस वैक्टीरिया को हराया और कहा है कि फैलीआ-इंट्रावासकूलर कोगूलेशन (थ्रोम्बोसिस) के इलावा और कुछ नहीं है।
इसका मुक़ाबला करने का तरीका यानी इलाज़ भी बता दिया है। उसके अनुसार, ऐंटीबायोटिक्स (Antibiotics tablets) ऐंटी-इंनफ्लेमटरी ( Anti-inflamentry) और ऐंटीकोआगूलेट्स (Aspirin) को लेने से यह ठीक हो जाता है। इसलिए इस बीमारी का इलाज़ सम्भव है। विश्व के लिए यह सनसनीख़ेज़ ख़बर इटालियन डाक्टरों ने कोविड-19 वायरस से मृत लाशों की आटोप्सीज़ (पोस्टमार्टम) कर तैयार की है।
कुछ और इतालवी वैज्ञानिकों के अनुसार, वेन्टीलेटर्स और इंसैसिव केयर यूनिट (ICU) की कभी ज़रूरत ही नहीं थी। इसके लिए इटली में अब नए सिरे से प्रोटोकॉल जारी किए गए हैं। CHINA इसके बारे में पहले से ही जानता था, मगर इसकी रिपोर्ट कभी किसी के सामने उसने सार्वजनिक नहीं की।
यह रेडिएशन इंफलामेशन और हाईपौकसीया भी पैदा करता है। जो लोग भी इस की जद में आ जाएं उन्हें Asprin-100mg और ऐप्रोनिकस या पैरासिटामोल 650mg लेनी चाहिए। क्यों…? क्योंकि यह सामने आया है कि कोविड-19 ख़ून को जमा देता है जिससे व्यक्ति को थ्रोमोबसिस पैदा होता है और उसके कारण ख़ून नसों में जम जाता है।
इस कारण दिमाग, दिल व फेफड़ों को ऑक्सीजन नहीं मिल पाती और मरीज को सांस लेने में दिक्कत होने लगती है। सांस न आने के कारण व्यक्ति की मौत हो जाती है। इटली के डॉक्टर्स ने WHO के प्रोटोकॉल को नहीं माना और उन लाशों पर आटोप्सीज़ की जिनकी मौत कोविड-19 की वजह से हुई थी।
डॉक्टरों ने उन लाशों की भुजाओं, टांगों और शरीर के दूसरे हिस्सों को खोल कर ठीक से देखने व परखने के बाद महसूस किया कि ख़ून की नस-नाड़ियां फैली हुई हैं और नसें थ्रोम्बी से भरी हुई थीं, जो ख़ून को आमतौर पर बहने से रोकती हैं और आक्सीजन के शरीर में प्रवाह को भी कम करती हैं। इस वजह से रोगी की मौत हो जाती है।
इस रिसर्च को जान लेने के बाद इटली के स्वास्थ्य-मंत्रालय ने तुरंत कोविड-19 के इलाज़ प्रोटोकॉल को बदल दिया और अपने पॉज़िटिव मरीज़ो को एस्पिरिन 100mg और एंप्रोमैकस देना शुरू कर दिया। मरीज़ ठीक होने लगे और उनकी सेहत में सुधार नज़र आने लगा। इटली के स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक ही दिन में 14 हजार से भी ज्यादा मरीज़ों को अस्पताल से छुट्टी दे दी।