श्रीकांत सिंह
नई दिल्ली। भाजपा शासित केंद्र सरकार की नीतियों के खिलाफ लोगों के आक्रोश का लावा कुछ इस तरह उबल रहा है कि लोग भाजपा समर्थकों को भी नहीं छोड़ रहे हैं।
मुंबई में एनसीबी के आफिस के आगे मुंबई के पत्रकारों ने रिपब्लिक भारत के प्रदीप भंडारी को धो डाला। कारण, प्रदीप ने लाइव कवरेज करते हुए कैमरा घुमा कर अन्य पत्रकारों को दिखाते हुए बोला कि ये चाय-बिस्किट वाले पत्रकार हैं। ये क्या सच दिखाएंगे, हम आपको सच दिखाएंगे। इसका विरोध करने पर प्रदीप ने एनडीटीवी और एवीपी के पत्रकारों के साथ अभद्रता की तो पत्रकारों ने प्रदीप को धुन दिया। प्रदीप ने भी ट्वीट कर मारपीट की बात कही है।
दरअसल, देश के मुख्यधारा के इलेक्ट्रानिक मीडिया में अब पत्रकार नहीं हैं। पत्रकार रूपी एक्टर और जोकर भर गए हैं। अधिकांश न्यूज चैनलों के एंकर और पत्रकार सर्कस के जोकर लगते हैं, क्योंकि अब न्यूज चैनलों का फंडा पत्रकारिता करना नहीं, जनता का इंटरटेंनमेंट करना है।
इस संदर्भ में वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल की एक पोस्ट का संदर्भ लेते हैं। ज्यादातर न्यूज चैनलों में व्यवस्था यह होती है कि स्टूडियो में एक मुख्य जोकर को बैठा दिया जाता है और चार अन्य चिल्लाने वाले जोकर मुर्गा फाइट को आगे बढ़ाते हैं। सब अजीब-अजीब से हास्यापद टॉपिक होते हैं। देश की बुनियादी समस्याओं के बजाय चीन और पाकिस्तान की बर्बादी दिखाई जाती है।
रोजी-रोटी की बात न कर हिन्दू-मुसलमान की बात की जाती है। कारण यह भी है कि कारपोरेट घरानों के एक विशेष वर्ग ने मीडिया पर कब्जा कर लिया है। यह वर्ग नहीं चाहता कि मीडिया सत्ता विरोधी या जनपक्षधरता की बात करे। दूसरी बात न्यूज चैनलों को टीआरपी के लिए इतनी मेहनत करने के बाद पता चलता है कि स्टार और सोनी जैसे चैनल उनसे पांच से दस गुणा अधिक देखे जा रहे हैं।
विज्ञापनों का अधिकांश हिस्सा भी वही ले जाते हैं तो चैनलों के आकाओं ने उन्हें कह दिया है कि जोकर बन जाओ, एंकरिंग करो, लेकिन पत्रकारिता नहीं। इसी का परिणाम रिपब्लिक के जोकर प्रदीप भंडारी की पिटाई के रूप में सामने आया है।
मजदूर नेता राघवेंद्र सिंह ने कहा है कि चंद उद्योगपति घरानों ने 99 प्रतिशत मीडिया को खरीद लिया है। बेईमान और निकम्मा होने के बावजूद जी न्यूज ने राज्यसभा की सीट ले ली। भला वह प्रधानमंत्री और सरकार के खिलाफ कैसे बोल पाएगा? मेरा प्रधानमंत्री से सवाल है कि वह पिछले छह वर्षों में कोई एक काम बता दें, जिससे जनता उन पर भरोसा कर सके। सरकार ने सिर्फ एक नीति बनाई है कि देश को बर्बाद कैसे किया जाए?
उन्होंने कहा कि सरकार की सारी कवायद देश को बेचने, विदेशी ताकतों के हाथ गिरवी रखने और देश के लोगों को गुलाम बनाने की है। कोविड का नाम लेकर सरकार देश का सबकुछ बेच देने पर तुली हुई है। जब तक कोविड देश से जाएगा, तब तक देश में कुछ बचेगा ही नहीं। श्रम कानून समाप्त कर दिया गया है, बेरोजगारी चरम पर है और अब किसानों को समाप्त करने की साजिश रची जा रही है।
उन्होंने कहा कि साइमन कमीशन वापस आ गया है और अंग्रेजों की सरकार है। बस चेहरे थोड़ा बदल गए हैं। यह उस पार्टी की सरकार है, जिसे अंग्रेजों के चाटुकार नेताओं ने पैदा किया था। खेती किसानी पर कभी टैक्स नहीं लगता था, लेकिन अब हमारे चौकीदार साहब किसानों और मजदूरों की चौकीदारी करने में लगे हैं। क्योंकि देश की चौकीदारी करने में वह पूरी तरह असफल साबित हुए हैं।
किसानों की आय दोगुनी करने और उन्हें अपनी उपज कहीं भी बेचने की छूट मिलने के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि दही नेस्ले बेच रहा है। दूध मदर डेयरी बेच रही है। दूध अमूल बेच रहा है। सब्जियां रिलायंस बेच रहा है। तो किस किसान की दोगुनी आय हो गई? बेतहासा निजीकरण किया जा रहा है, लेकिन निजीकरण के परिणाम कभी भी अच्छे नहीं आए हैं।
उन्होंने कहा कि बहुत जल्दी मीडिया का भी नकाब उतरने वाला है। मीडिया की घिनौनी हरकतों को लोग समझने लगे हैं। यही वजह है कि पत्रकारों के सम्मान में बट्टा लगा है। अब तो मीडिया हाउसों पर हमले तक होने लगे हैं। मीडिया सरकार की दलाली कर रहा है। अगर उसने इस घिनौनी हरकत को न छोड़ा तो जो दो तीन प्रतिशत लोग टीवी न्यूज देखते हैं, वे भी छोड़ देंगे।