Throat bone of Modi government: नये किसान कानूनों के विरोध में चल रहा किसान आंदोलन मोदी सरकार के गले की हड्डी बन चुका है। यही वजह है कि मोदी सरकार किसी न किसी तरह आंदोलन को बदनाम कर समाप्त कराना चाहती है।
Throat bone of Modi government: आंदोलन को बदनाम नहीं किया जा सका
चरण सिंह राजपूत
Throat bone of Modi government: जब किसानों को आतंकवादी, देशद्रोही कहकर आंदोलन को बदनाम नहीं किया जा सका। पाकिस्तान और चीन से फंडिंग का आरोप लगाकर आंदोलन को न तुड़वाया जा सका। गणतंत्र दिवस पर तिरंगा का अपमान करने का आरोप लगाकर किसानों को धरना स्थल से न हटाया जा सका तो अब मीडिया से रिकार्ड पैदावार का हवाला देते हुए किसान के तो खेत में काम करने की बात मोदी सरकार करा रही है।
केंद्रीय मंत्री मीनाक्षी लेखी ने आंदोलित किसानों को मवाली कहा तो आजतक की एंकर अंजना ओम कश्यप रिकार्ड पैदावार की बात कर किसान नेता राकेश टिकैत से बातचीत करते हुए आंदोलित किसानों को गलत साबित करती दिखाई दीं।
राकेश टिकैत ने दिया अंजना ओम कश्यप को जवाब
अंजना ओम कश्यप का कहना था कि देश में रिकार्ड पैदावार हुई है। किसान तो अपने खेत में काम कर रहे हैं और आंदोलनकारी तो बहुत कम हैं। हालांकि राकेश टिकैत ने भी देहाती में कश्यप को जवाब दिया है।
उन्होंने कहा कि रिकार्ड पैदावार क्या सरकार ने की है। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने किसान नेता चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत को गेहूं की पैदावार बढ़ाने के लिए बुलाया था। एक घंटे की मुलाकात में महेंद्र सिंह टिकैत ने उन्हें गेहूं की पैदावार बढ़ाने का फार्मूला बताया।
राकेश टिकैत ने बड़ी बेबाकी से कहा कि वह 18-18 घंटे पीएम आवास में रहे पर प्रधानमंत्री से नहीं मिले। उन्हें प्रधानमंत्री से मिलने का कोई शौक नहीं है। राकेश टिकैत का सीधे-सीधे कहना था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सत्ता के मद में किसान का वजूद भूल रहे हैं।
जंतर-मंतर पर आंदोलन से नहीं रोका जा सका
दरअसल, नये किसान कानूनों के विरोध में शुरू हुए किसान आंदोलन को मोदी सरकार ने हर हथकंडे अपनाकर बदनाम करने की कोशिश की पर किसानों की आवाज को दबा नहीं पाई। जो सरकार आंदोलित किसानों को दिल्ली में न घुसने देने की कसम खाये बैठी थी उसे न केवल गणतंत्र दिवस पर किसान परेड निकालने की अनुमति देने के लिए विवश होना पड़ा बल्कि संसद के मानसून सत्र में जंतर-मंतर पर आंदोलन करने से न रोक पाई।
स्थिति यह है कि कृषि मंत्री लगातार किसानों को बातचीत के लिए आमंत्रित कर रहे हैं और किसान बिना किसी शर्त के बातचीत करने की बात पर अड़े हुए हैं। सीएए और एनआरसी के विरोध में चल रहे आंदोलन को धर्म का रूप देकर डंडे के बल पर समाप्त कराने वाली मोदी सरकार किसान आंदोलन के सामने मजबूर नजर आ रही है।
कमजोर पड़ चुका है विपक्ष
किसानों ने न केवल देश की राजधानी दिल्ली को घेर रखा है बल्कि विभिन्न टोल टैक्स पर डेरा जमाया हुआ है। कई टोल टैक्स को किसानों ने फ्री करा रखा है। जिस मोदी सरकार की तानाशाही के सामने विपक्ष कमजोर पड़ चुका है उसे किसान लगातार ललकार रहे हैं।
न केवल मोदी सरकार बल्कि खट्टर और योगी सरकार के भी किसानों ने नकेल डाल रखी है। किसान आंदोलन अब मोदी सरकार के गले की हड्डी बन चुका है। यदि मोदी सरकार नये किसान कानून वापस लेती है तो अडानी और अंबानी की नाराजगी मोल लेनी होगी।
और यदि वापस नहीं लेती है तो किसान आंदोलन न केवल अगले साल होने वाले उत्तर प्रदेश, पंजाब, गुजरात और उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में आफत बनने वाला है बल्कि 2024 के आम चुनाव में मोदी सरकार गिर जाने की आशंका भी पैदा हो गई है।
तो धरी रह जाएगी सारी राजनीति
किसानों के चुनाव मैदान में उतरने की बात कहने पर तो न केवल सत्तापक्ष बल्कि विपक्ष में बैठे राजनीतिक दल भी बेचैन हो उठे हैं। राजनीतिक दल जानते हैं कि देश में यदि किसानों के नाम पर राजनीतिक दल बन गया और किसान उस दल के पक्ष में एकजुट हो गये तो सभी दलों की राजनीति धरी की धरी रह जाएगी।
सिंघु बार्डर पर बैठे किसान राजनीतिक दल बनाने की बात कर चुके हैं। किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ुनी के मुंह से भी कई बार इस तरह की बातें निकल चुकी हैं। राकेश टिकैत इस तरह की बातों को हवा न देने की बात करते रहते थे तो आज की तारीख में वह भी चुनाव में जाने की बात करने लगे हैं। भाकियू अध्यक्ष नरेश टिकैत के मुंह से भी चुनाव की बात निकल चुकी है।
चौधरी चरण सिंह के बाद न अजित सिंह उनकी राजनीतिक विरासत को संभाल पाये थे और न ही जयंत सिंह में वह तेवर है। इसका फायदा उठाकर राकेश टिकैत जाटों के बल पर राजनीतिक महत्वकांक्षा पाले बैठे हैं। आज की तारीख में वह देश के किसान नेता बन चुके हैं। इन सब का फायदा उठाने के मूड में अब राकेश टिकैत हैं। वैसे भी किसान लगातार सरकारों के साथ ही राजनीतिक दलों पर उपेक्षा का आरोप लगाकर राजनीतिक दल बनाने की पैरवी करते रहे हैं।