
Tribal concerns: चुनाव के समय ही बीजेपी को क्यों सुध आती है आदिवासियों की? मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के नेतृत्व में हो रही आदिवासियों की फिक्र के क्रम में गृहमंत्री अमित शाह के सहारे आदिवासियों को साधने का प्रयास किया जा रहा है।
Tribal concerns: लोकसभा और विधानसभा की कुछ सीटों पर उपचुनाव
चंद्रशेखर महाजन
विजया पाठक से बातचीत पर आधारित
Tribal concerns: कुछ ही माह बाद प्रदेश में लोकसभा और विधानसभा की कुछ सीटों पर उपचुनाव होने वाले हैं। इन उपचुनावों में ज्यादातर सीटें आदिवासी बहुल क्षेत्रों की हैं। स्वाभाविक है कि केन्द्रबिंदु में आदिवासी ही होंगे। हो भी रहे हैं।
प्रदेश की सत्तासीन पार्टी एक-एक कर आदिवासियों के हितों की बातें कर रही है। आदिवासियों के हितों की योजनाएं लागू करने की बातें कर रही है। लेकिन खुद को गरीबों का हितैषी बताने वाली शिवराज सरकार को चुनावी समय में ही आदिवासियों की सुध लेना कई महत्वपूर्ण सवाल खड़े करता है।
आदिवासियों के पर लगातार हमले
Tribal concerns: हमेशा उपेक्षा के शिकार होने वाले इन आदिवासियों को समाज में बराबरी का दर्जा दिलवाने में नाकामयाब सरकार के कार्यकाल में ही आदिवासियों के पर लगातार हमले हो रहे हैं। पिछले कुछ दिनों से लगातार देखने में आ रहा है कि सरकार आदिवासियों को लेकर काफी सजग हो गई है।
हर कार्यक्रम में प्रमुखता से आदिवासियों की उपस्थिति, उन्हीं के बीच जाकर कार्यक्रमों का आयोजन और आदिवासी जननायकों पर केंद्रित कार्यक्रमों का आयोजन सीधे इस बात की ओर इशारा करते हैं कि सरकार इन आदिवासियों का उपयोग वोटबैंक के लिए करना चाहती है।
केवल वोटबैंक की राजनीति
यह पहला अवसर नहीं है। इससे पहले भी कई ऐसे मौके आए हैं जब इसी सरकार ने आदिवासियों का उपयोग केवल वोटबैंक की राजनीति के लिए किया है। पिछले दिनों ही खरगौन जिले में लूट के मामले में गिरफ्तार आदिवासी युवक की मौत हो गई।
उसके परिजनों ने मौत का कारण पुलिस प्रताड़ना बताया है। लेकिन सरकार ने बजाय इसकी जांच कराने के, खानापूर्ति के रूप में तीन पुलिसकर्मियों सहित जेल के एक अधिकारी को निलंबित कर दिया। क्या इसी से आदिवासियों का भला हो पाएगा?
कांग्रेस की होड़ में बीजेपी
पूर्व सीएम कमलनाथ के नेतृत्व में आदिवासियों की सुध ली जा रही है। मजबूरन उसी राह पर शिवराज सरकार चल रही है। एक-एक कर ऐसे मुद्दे उठाए जा रहे हैं, जिससे शिवराज सरकार खुद सकते में है। इसी बीच सरकार भी कांग्रेस से होड़ करने के मूड में है।
प्रदेश कांग्रेस की ओर से आदिवासियों को लेकर जो कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं, उसके पीछे प्रदेश सरकार भी चल पड़ती है। मध्य प्रदेश में ओबीसी पर सियासत के साथ ही अब राजनीतिक दलों ने आदिवासी वर्ग का मुद्दा पकड़ लिया है।
उपचुनाव और 2023 के विधानसभा चुनाव की तैयारी
इसे आने वाले उपचुनाव और 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियों से जोड़कर देखा जा रहा है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने आदिवासी बहुल क्षेत्र में आदिवासी अधिकार यात्रा निकाल कर आदिवासियों के साथ हो रहे अत्याचार का मुद्दा उठाया।
इसे देख भाजपा खेमे में भी हलचल तेज हो गई। बीजेपी ने इस यात्रा को धोखा करार दिया। मध्य प्रदेश में ओबीसी पर सियासत का दौर चला। कांग्रेस की कमलनाथ सरकार ने 14 से बढ़ा कर 27 फीसदी आरक्षण ओबीसी के लिए लागू कर दिया था।
इसके बाद कोर्ट में स्टे लग गया। भाजपा सरकार ने भी ओबीसी पर आरक्षण 27 फीसदी कर दिया। अब इस पर क्रेडिट के लिए मैदान में उतरे हुए हैं। पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने 09 अगस्त को आदिवासी दिवस घोषित किया था। जिसे वर्तमान सरकार ने बंद कर दिया है।
प्रदेश कांग्रेस ने सरकार को किया मजबूर
यह भी सच है कि शिवराज सरकार का आदिवासियों के प्रति रुझान के पीछे प्रदेश कांग्रेस और पूर्व सीएम कमलनाथ का बहुत बड़ा योगदान है। कमलनाथ के नेतृत्व में प्रदेश में आदिवासियों को लेकर जो मसले उठाए जा रहे हैं, उससे मध्य प्रदेश सरकार मजबूरन आदिवासियों के हितों के प्रति फिक्रमंद दिख रही है।
साथ ही इस समय आदिवासी बहुल क्षेत्रों में उपचुनाव भी होने वाले हैं। पिछले लगभग डेढ़ वर्षों से भाजपा सरकार जब से शासन में आई, उसका ध्यान असल मुद्दों से कहीं पीछे हट गया है। यही वजह है कि जब विपक्षी पार्टी कांग्रेस उन विषयों को मुद्दा बनाकर जनता के सामने पेश करती है तब प्रदेश सरकार की नींद खुलती है और वो उस तरफ ध्यान देना शुरू करते हैं।
सरकार से पहले विपक्षी नेताओं का ध्यान
पिछले दिनों ऐसे कई मामले सामने आए, जहां सरकार से पहले विपक्षी नेताओं का ध्यान गया। प्रदेश में कई जगहों पर उपचुनाव की तैयारियां चल रही हैं। इस बार भाजपा ने उपचुनाव में मुद्दा बनाया है पिछड़े वर्गों को साधने का।
लेकिन ध्यान दिया जाए तो इसी भाजपा सरकार के कार्यकाल में पिछड़े वर्ग और आदिवासी वर्ग के लोगों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। फिर वो चाहे आदिवासी लोगों के साथ हुई बदसलूकी का हो या फिर उनके साथ हुई मारपीट का।
इन सभी मुद्दों को सत्तारूढ़ पार्टी ने तो दरकिनार ही कर दिया था। लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री और विपक्ष के नेता कमलनाथ के नेतृत्व में इन मुद्दों को पूरी जिम्मेदारी के साथ जनता के सामने रखा गया। मजबूरन प्रदेश सरकार को इन मामलों को गंभीरता से लेते हुए इन पर कदम उठाना जरूरी हो गया।
कांग्रेस को विधानसभा चुनावों में मिलेगा फायदा!
देखा जाए तो कुछ समय से कांग्रेस पार्टी विपक्ष की भूमिका बखूबी निभा रही है। उसने एक नहीं, कई ऐसे मुद्दे उठाए जिन पर प्रदेश सरकार पर्दा डालने की कोशिश कर रही थी। उन मुद्दों को जनता के सामने लाने का कार्य किया है। उसका फायदा पार्टी को आने वाले विधानसभा चुनाव में मिलने की पूरी उम्मीद है।
जबलपुर में जनजातीय समाज के राजा शंकर शाह और उनके पुत्र कुंवर रघुनाथ शाह के बलिदान दिवस में शामिल होने के लिए केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह पहुंचे। यूं तो शंकर शाह और रघुनाथ शाह का बलिदान जबलपुर में हुआ, लिहाज़ा ये जगह सबसे मुफीद थी। लेकिन इसके सियासी निहितार्थ भी हैं। महाकौशल इलाके के आस-पास के लगभग दस जिले आदिवासी बहुल जिले हैं।
कुल 47 सीटें जनजातियों के आरक्षित
Tribal concerns: एमपी में कुल 47 सीटें जनजातियों के आरक्षित हैं। जिनमें से पिछले चुनाव में कांग्रेस के पास 32 सीटें गईं थीं। लोकसभा के चुनाव में भले ही भाजपा ने एक तरह से एमपी में क्लीन स्वीप किया, लेकिन कई जनजातीय विधानसभा क्षेत्रों में उसे उम्मीद से कम वोट मिले।
इसी ने भाजपा की फ़िक्र को और बढ़ाया है। एमपी में 2011 की जनगणना के मुताबिक़ एक करोड़ 53 लाख से अधिक आबादी जनजाति समाज की है। यानी, सूबे का लगभग हर पांचवा-छठवां व्यक्ति इसी समुदाय से आता है।
लगभग 89 विकासखंड जनजाति समुदाय के बाहुल्य वाले हैं। भाजपा के लिए इस जाति को साधना बहुत मुश्किल भरा रहा है। कुल मिला कर भाजपा का पूरा फोकस इस वर्ग को अगले चुनाव में अपने पक्ष में करने का है। देश के उन राज्यों में जहां चुनाव हैं, वहां भी इस वर्ग के लोगों को साधने का प्रयास किया जा रहा है।