Two child policy: सरकारों का हमेशा यह प्रयास होता है कि हर समस्या का ठीकरा जनता के सिर फोड़ दिया जाए। सरकारों की गलत नीतियों से जब भुखमरी और बेरोजगारी नियंत्रित नहीं हुई तो इसका जिम्मेदार भी लोगों को ठहरा दिया जा रहा है।
Two child policy: क्या बढ़ती जनसंख्या है बेरोजगारी की बड़ी वजह
चरण सिंह राजपूत
Two child policy: उत्तर प्रदेश में अपनी नीति थोपने वाली योगी सरकार को प्रदेश में भुखमरी और बेरोजगारी की बड़ी वजह बढ़ती जनसंख्या दिखाई दे रही है। योगी सरकार उत्तर प्रदेश में जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू करने जा रही है।
राज्य विधि आयोग ने बाकायदा इसका मसौदा बनाना शुरू कर दिया है। प्रदेश में इस कानून के लागू होने के बाद दो से अधिक बच्चों वाले अभिभावकों को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। अभिभाववकों को सरकारी सुविधाओं और सब्सिडी से हाथ भी धोना पड़ सकता है।
ऐसे हो सकता था जनसंख्या पर नियंत्रण
दरअसल, दो से अधिक बच्चे गरीब और अशिक्षित परिवारों में ही ज्यादा देखने को मिलते हैं। शिक्षित परिवार भले ही वह किसी धर्म और जाति से हों मुख्यत: दो बच्चों वाली नीति पर ही चलते हैं। सरकारें यदि गरीबी और अशिक्षा जैसी समस्याओं पर ध्यान दे लेतीं तो जनसंख्या पर भी बहुत नियंत्रण हो सकता था।
आज के माहौल में तो लड़के और लड़की दोनों में बच्चे पैदा करने की तमाम समस्याएं पैदा हो रही हैं। वैसे भी जिस तरह से देश का युवा वर्ग विभिन्न प्रकार के नशों का आदी हो गया है, उसकी दिनचर्या अनियमित हो गई है। मोबाइल की चपेट में आ गया है, इन सबके चलते भी उसकी यौन क्षमता लगातार घट रही है।
और चीन को बनानी पड़ी तीन बच्चे वाली नीति
वैसे भी दुनिया में सबसे अधिक जनसंख्या वाले देश चीन में इस फार्मूले से असंतुलन पैदा हो गया था। एक बच्चे की नीति बनाने वाले चीन को 2016 में दो बच्चे की नीति बनानी पड़ी और अब मजबूरन तीन बच्चे पैदा करने के लिए कहना पड़ा। योगी सरकार को यह समझ लेना चाहिए कि चीन को भी अपनी जनसंख्या नियंत्रण नीति बदलने के लिए मजबूर होना पड़ा है।
यह देश में बनाया गया माहौल ही है कि उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि भाजपा शासित कई दूसरे राज्यों में भी जनसंख्या विस्फोट के तर्कों का हवाला देते हुए हाल के दिनों में कई नीतियां बनाई हैं, जिनके तहत दो से ज्यादा बच्चों वाले लोगों को पंचायत चुनाव, सरकारी नौकरी या अन्य फायदों से वंचित किया जा सकता है।
कम हो रही है आबादी विस्तार की दर
दरअसल, भाजपा जनसंख्या विस्फोट के लिए मुस्लिमों को जिम्मेदार बताकर हिन्दू वोटबैंक का ध्रुवीकरण करना चाहती है। जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि देश में दशक के आधार पर आबादी विस्तार की दर कम होने लगी है।
2015-16 में राष्ट्रीय स्तर पर प्रजनन दर 2.2 पर आ गई थी। 2019-20 के आंकड़े भी दिखा रहे हैं कि आबादी स्थिरता की ओर बढ़ रही है। बहुत बड़ी आबादी होने के कारण कुछ समय तक आबादी में वृद्धि होती रहेगी, लेकिन जनसंख्या में स्थिरता अनुमान से पहले ही आ जाएगी।
सबसे अधिक प्रभावित होंगे अशिक्षित दलित
ऐसी स्थिति में दो बच्चे की नीति समाधान के बजाय संकट पैदा कर सकती है। भले ही सरकारें मुस्लिमों को आधार बनाकर जनसंख्या नियंत्रण कानून ला रही हों। पर इस कानून के लागू होने से सबसे अधिक अशिक्षित दलित प्रभावित होंगे। इस कानून के लागू होने पर लिंग जांच और गर्भपात के मामलो में भी वृद्धि होने की आशंका है।
चुनावी फायदे के लिए तलाक के मामले भी बढ़ेंगे। ऐसे कई राज्य हैं जिनमें अपने आप जनसंख्या नियंत्रण हो रहा है। असम में 2019-20 में प्रजनन दर 1.9 पर आ गई थी। ऐसे में दो से ज्यादा बच्चों वाले परिवारों को सरकारी योजनाओं से दूर करने के कदम से जनसंख्या की वृद्धि दर पर तो कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, लेकिन वंचित वर्ग के सामने मुश्किलें जरूर पैदा हो जाएंगी।
लक्षद्वीप में तो प्रजनन दर 1.4 फीसद पर
लक्षद्वीप में तो प्रजनन दर 1.4 फीसद पर आ गई है। 1991 से 2001 के बीच यहां की आबादी 17.19 फीसद बढ़ी थी, जबकि 2001 से 2011 के बीच यह वृद्धि मात्र 6.3 फीसद रही। बूढ़ी होती आबादी और घटता कार्यबल चिंता का कारण है। लिंग जांच के मामले भी बढ़ रहे हैं।
वैसे भी दो बच्चा नीति के प्रभाव को लेकर कोई प्रमाण नहीं है। पूर्व आईएएस अधिकारी निर्मला बुच के अध्ययन में सामने आया है कि ऐसी नीति पर कदम बढ़ाने वाले राज्यों में लिंग जांच, असुरक्षित गर्भपात के मामले बढ़ गए। स्थानीय चुनावों में खड़े होने के लिए कुछ लोगों ने तलाक ले लिया तो कई परिवार बच्चों को गोद देने लगे।
बच्चों के भविष्य पर संकट की आशंका
Two child policy: ऐसे में बच्चों का भविष्य बर्बाद होने की आशंका को बल मिलेगा। शिक्षा और आय का स्तर उठने से प्रजनन दर स्वाभाविक रूप से और कम होगी। विकास एवं प्रजनन दर के बीच का संबंध केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में स्पष्ट दिखता है। लैंगिक समानता, महिला सशक्तीकरण, बेहतर शिक्षा, आर्थिक विकास और परिवार नियोजन के माध्यमों तक आसान पहुंच से लोगों को छोटे परिवार के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है।
होना यह चाहिए कि हम मुफ्त शिक्षा के जरिये महिलाओं को सशक्त करें। कम उम्र में लड़कियों की शादी को हतोत्साहित करें। स्कूल से ड्रॉप आउट होने की दर कम करें और काम व बच्चे के पालन पोषण के बीच संतुलन का माहौल बनाते हुए जनसंख्या नियंत्रण का लक्ष्य हासिल करें।