
UP Elections 2022: उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव करीब आते जा रहे हैंं। ऐसे में एक प्रश्न चुनावी फिजा में तैर रहा है कि इस चुनाव में क्या हो सकता है? क्या योगी आदित्यनाथ वापसी करेंगे? क्या अखिलेश यादव की रैलियों में उमड़ती भीड़ उन्हें सत्ता के सिंहासन तक ले जाएगी? आज का विश्लेषण इसी पर।
UP Elections 2022: टेनी महाराज भी चुनावी मुद्दों के केंद्र में
श्रीकांत सिंह
UP Elections 2022: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने भाषणों में बार—बार अखिलेश यादव पर हमले कर रहे हैं। वह अब्बा जान और जिन्ना की चर्चा करना नहीं भूलते। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र उर्फ टेनी महाराज भी चुनावी मुद्दों के केंद्र में बने हुए हैं। एसआईटी की रिपोर्ट आने और पत्रकारों से बदसलूकी करने के बाद भी उन्हें न हटाया जाना भाजपा विरोधियों के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं है।
सवाल यह भी है कि उस केंद्रीय मंत्री को न हटाने के पीछे पीएम मोदी की क्या मजबूरी है, जिसका बेटा किसानों को कुचल कर मारने का आरोपी है? क्या इसके पीछे कोई चुनावी मजबूरी है? जबकि किसान नेता और चुनाव विश्लेषक योगेंद्र यादव कह चुके हैं कि टेनी महाराज जहां— जहां जाएंगे भाजपा के पांच हजार वोट जरूर कम कराएंगे।
भाजपा के पास ध्रुवीकरण के अलावा कोई खास मुद्दा नहीं!
UP Elections 2022: अयोध्या, मथुरा और काशी का बार—बार जिक्र किया जाना भी इस ओर संकेत करता है कि भारतीय जनता पार्टी के पास ध्रुवीकरण के अलावा कोई खास मुद्दा नहीं है। उत्तर प्रदेश में जिन विकास कार्यों को रेखांकित किया जा रहा है, उनसे संबंधित योजनाएं या तो केंद्र की देन हैं या विपक्ष उन्हें अपनी बताने से नहीं चूक रहा है। यानी, विकास के नाम पर बताने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार का अपना कुछ भी नहीं है।
वरिष्ठ पत्रकार शरद प्रधान ने एक चुनावी चर्चा के दौरान कहा कि पहले जो हालात रहे हैं, उससे तो यही लग रहा था कि योगी आदित्यनाथ सत्ता में वापस आ जाएंगे। और अखिलेश यादव भी शुरू में ठंडे लग रहे थे। लेकिन अब अखिलेश यादव ने जो गठबंधन बनाया है, उससे भाजपा की हालत पतली लगने लगी है। इस बात को मजबूती भी मिल रही है, क्योंकि पीएम मोदी ने जिस तरह के कदम हाल ही में उठाए हैं, वे इसी ओर इशारा करते हैं। क्योंकि उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव न होते तो शायद खेती कानून वापस न लिए जाते।
लखीमपुर खीरी कांड से भाजपा को बड़ा झटका
UP Elections 2022: शरद प्रधान ने कहा है कि लखीमपुर खीरी कांड से तो भाजपा को बहुत बड़ा झटका लगा है। मेनस्ट्रीम मीडिया की बात करें तो वह सरकार से कहीं ज्यादा टेनी पिता—पुत्र को बचाने में लगा रहा। जब सबूत नहीं मिले थे तो यही मीडिया आशीष मिश्र टेनी को निर्दोष बता रहा था। और जब एसआईटी की रिपोर्ट आ गई तो यह कहने लगा कि जुर्म बेटे ने किया है तो उसमें बाप का क्या दोष हो सकता है?
अखिलेश यादव ने तो एक बार जिन्ना को चर्चा में लाकर बेवकूफी कर दी थी। लेकिन भाजपा वालों ने जिस तरह जिन्ना का जाप शुरू कर दिया, उससे तो यही लगता है कि घूम फिर कर भाजपा के पास हिंदू—मुसलमान करने के अलावा कोई ठोस चुनावी रणनीति नहीं है। इसलिए भाजपा एक निराशाजनक स्थिति में है। क्योंकि यह निराशाजनक स्थिति तभी पैदा होती है, जब हालात डांवांडोल होते हैं।
खुद अजय मिश्र टेनी पर हत्या का मुकदमा, फैसला तीन वर्षों से सुरक्षित
वहीं एक और वरिष्ठ पत्रकार आलोक जोशी कहते हैं, मुझे तो टेनी महाराज का नाम भी नहीं पता था। क्या बेटे पर अपराध साबित होने को लेकर पिता पर कार्रवाई होनी चाहिए? इस पर वह कहते हैं, बेटे के अपराध को दरकिनार कर दिया जाए तो भी अजय मिश्र टेनी के खिलाफ एक हत्या के मुकदमे में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तीन वर्षों से फैसला सुरक्षित रखा हुआ है। इसको ध्यान में रखते हुए यह कहा जा सकता है कि अगर सरकार को अपनी छवि की थोड़ी भी फिक्र होती तो अजय मिश्र टेनी को कभी भी मंत्री नहीं बनाया जाता।
जोशी जी का कहना है कि टेनी महाराज भाजपा को कितना फायदा पहुंचाएंगे, यह मुझे नहीं पता। लेकिन उन्हें हटाने में भाजपा जितनी देरी करेगी, उसे उतना ही चुनावी नुकसान पहुंचेगा। इस चुनाव में दो तरह के मुद्दे हैं। एक तो यह कि अखिलेश यादव की रैलियों में अपार भीड़ जुट रही है। बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार से लोग त्रस्त हैं। रही बात टेनी की तो उनकी वजह से यह माहौल बना है कि भाजपा गुंडागर्दी के मामले में किसी भी पार्टी से पीछे नहीं है। तो अब भाजपा कैसे लोगों को डरा पाएगी कि भाजपा नहीं जीती तो गुंडों की पार्टी सत्ता में आ जाएगी?
अभी भी रेस में भाजपा, ध्रुवीकरण की आंधी बाकी
इसी प्रकार वरिष्ठ पत्रकार कुमार भवेश कहते हैं, पिछले दो तीन महीनों में अखिलेश यादव मजबूत होते दिखाई दे रहे हैं। लेकिन अभी भी भाजपा रेस में है। मुद्दा यही है कि योगी को रखना है या उनकी विदाई कर देनी है। मुझे लगता है कि भाजपा जब सरकारी प्रचार से निकल कर पार्टी स्तर पर चुनाव प्रचार के लिए उतरेगी तो अखिलेश यादव की गति में अवरोध जरूर पैदा होगा। लोगों में कई स्तरों पर असंतोष है। लेकिन जब ध्रुवीकरण की आंधी चलेगी तो सबकुछ हवा में उड़ जाएगा। और अंत में योगी जी को थोप दिया जाएगा।
वरिष्ठ पत्रकार उत्कर्ष कहते हैं कि भाजपा के पास तो एक ही हथियार है। और उसी को वह चुनाव में चलाएगी। भाजपा ने 2017 का चुनाव मुजफ्फरनगर तो 2019 का चुनाव पुलवामा पर लड़ कर जीता था। लेकिन इस बाइस के चुनाव में मैं कुछ अलग देख रहा हूं। प्रियंका गांधी की रैलियों में संगठन की कमजोरी के बावजूद भीड़ जुट रही है। कौन हैं ये लोग? ये वही लोग हैं जो मुफ्त का राशन मिलने से कुछ तो संतुष्ट हैं। लेकिन यह भी सोचते हैं कि आखिर कब तक भीख से गुजारा चलेगा? नौकरी मिल जाए तो हालात सुधर सकते हैं। लेकिन भाजपा तो हर बार की तरह अपना ही नरेटिव चलाएगी।
संपादन और जप है भाजपा का रहस्य
इन जाने माने पत्रकारों के विचारों से यही निष्कर्ष निकल रहा है कि घुमा फिराकर भाजपा सत्ता हथिया ही लेगी। भले ही सीटों की संख्या कम हो जाए। फिर सवाल है, क्या ऐसे ही चलेगा? विपक्ष को अपनी रणनीति में क्या सुधार करना चाहिए? मेरा मत है कि विपक्ष को अगर पुनर्जीवित होना है तो उसे आत्ममुग्धता से बाहर निकलना होगा। उसे भाजपा की जीत के रहस्यों को समझना होगा। भाजपा की जीत के दो रहस्य समझ में आते हैं। पहला संपादन और दूसरा जप।
विस्तार में जाएं तो भाजपा ने संपादन के महत्व को समझा। अटल जी से लेकर सामान्य कार्यकर्ता तक भाजपा संपादकों का समूह है। संपादक क्या करता है? किसी भी विषय को तोड़—मरोड़कर किसी के भी पक्ष में कर देता है। भाजपा इस संपादन कला का इस्तेमाल तमाम सूक्ष्म स्तरों पर भी करती है। जैसे, आप किसी भी भाजपाई या संघी से बहस कर रहे हैं तो वह विरोधी बातों को अपने शोर से दबा ले जाता है। उसे कुछ भी नहीं आता तो भी वह भारत माता की जय बोलने लगेगा या जय श्रीराम बोलने लगेगा।
और जब उसके मतलब की बात होगी तो वह चुप हो जाएगा। हो गया मौखिक संपादन। इस पर विस्तार से कभी चर्चा करेंगे। अब बात करते हैं जप की। टूजी, थ्रीजी, 15 लाख और 35 रुपये लीटर पेट्रोल आदि की रट लगाकर या जप करके भाजपा ने 2014 में सत्ता हथिया ली। उसे लगा कि इस जप के परिणाम भी सामने आते हैं। और आज भाजपा जप के बल पर सर्वाइब कर रही है। जिन्ना कोई भगवान नहीं हैं। लेकिन अखिलेश की बात का संपादन करके भाजपा जिन्ना नाम का वाचिक जप कर रही है।
निष्कर्ष
UP Elections 2022: इसलिए विपक्ष को समझना होगा कि किसी झूठ को भी बार—बार बोला जाए तो वह सच का परिणाम देने लगता है। उसे अपने इंटेलेक्चुअल स्वभाव से भी बाहर निकलना होगा। संपादन और जप के महत्व को समझना होगा। पंडितों ने रावण के यज्ञ में इंद्रशत्रु: वर्धतु यानी इंद्र का शत्रु रावण बढ़े मंत्र का संपादन करके जप दिया, शत्रु: इंद्र वर्धतु यानी रावण का शत्रु इंद्र बढ़े। अर्थ ही बदल गया तो परिणाम भी रावण के बजाय इंद्र के पक्ष में चला गया। भाजपा यही कर रही है। विपक्ष को भी यही करना होगा। नहीं तो यही होगा—मुद्दे भी अच्छे थे। भीड़ भी खूब थी। लेकिन विपक्ष सत्ता से वंचित रह गया। पूरा आलेख पढ़ने के लिए शुक्रिया। विचार स्रोतों का वीडियो यहां शेयर किया जा रहा है।