US Presidents: अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव की मतगणना में बाइडन बढ़त बनाए हुए हैं। डोनाल्ड ट्रंप को कोर्ट से भी राहत नहीं मिली है। अगर बाइडन अमेरिका के नए राष्ट्रपति बनते हैं, तो कई बदलाव सामने आएंगे। वैश्विक मुद्दों पर अमेरिका की नीति बदल सकती है।
US Presidents: अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया काफी पेचीदा और लंबी
इंफोपोस्ट न्यूज डेस्क, नई दिल्ली। US Presidents: डोनाल्ड ट्रंप के चुनावी प्रतिद्वद्वी जो बाइडन के वादों के मुताबिक, दूसरे देशों की मदद के जरिये अमेरिकी निवेश को विस्तार दिया जाएगा। इसके माध्यम से अमेरिका की सुरक्षा और संपन्नता को बढ़ावा देने की कोशिश की जाएगी।
एच-1बी वीजा प्रतिबंधों में ढील देना और उनकी संख्या को बढ़ाना बाइडन की प्राथमिकताओं में है। उन्होंने ग्रीन कार्ड के लिए देशों का कोटा खत्म करने का भी भरोसा दिया है। कोटा के कारण ही ज्यादातर भारतीयों को ग्रीन कार्ड के लिए दशकों तक इंतजार करना पड़ता है। विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित में शोध वाले छात्रों को छूट का लाभ मिल सकता है।
इसके अलावा जलवायु परिवर्तन पर बड़े पैमाने पर काम होने की उम्मीद है। अमेरिका विश्व स्वास्थ्य संगठन में दोबारा शामिल होगा। और कोरोना संक्रमण से विश्व के साथ मिलकर लड़ेगा। अमेरिका आतंकवाद पर जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाएगा। जो बाइडन शरणार्थियों की सीमा 1.25 लाख करने की घोषणा कर चुके हैं।
राष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया
US Presidents: दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका में राष्ट्रपति पद के चुनाव की प्रक्रिया भारत के मुकाबले काफी पेचीदा और लंबी होती है। अमेरिकी संविधान के अनुच्छेद 2 में राष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया का उल्लेख है।
संविधान में ‘इलेक्टोरल कॉलेज’ के जरिये राष्ट्रपति के चुनाव की व्यवस्था है। हालांकि अमेरिकी संविधान निर्माताओं का एक वर्ग इस पक्ष में था कि संसद को राष्ट्रपति चुनने का अधिकार मिले। दूसरा धड़ा सीधी वोटिंग के जरिये चुनाव के हक में था। ‘इलेक्टोरल कॉलेज’ को इन दोनों धड़ों की अपेक्षाओं के बीच की एक कड़ी माना गया।
संयुक्त राज्य निर्वाचक मंडल या संयुक्त राज्य इलेक्टोरल कॉलेज वह निकाय हैं, जो हर चार साल में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव करता है। संयुक्त राज्य के नागरिक प्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति को नहीं चुनते। वे निर्वाचकों को चुनते हैं, जो विशिष्ट उम्मीदवारों को मतदान करने की प्रतिज्ञा लेते हैं।
पहले होता है पार्टी में चुनाव
राष्ट्रपति चुनाव से पहले राजनीतिक दल अपने स्तर पर दल का प्रतिनिधि चुनते हैं। प्राथमिक चुनाव में चुने गए पार्टी के प्रतिनिधि दूसरे दौर में राजनीतिक दल का हिस्सा बनते हैं। और अपनी पार्टी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का चुनाव करते हैं। यही वजह है कि कुछ राज्यों में जनता ‘प्राइमरी’ दौर में मतदान का इस्तेमाल न करके ‘कॉकस’ के जरिये पार्टी प्रतिनिधि का चुनाव करती है।
सबसे पुराना लोकतंत्र
भारत यदि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है तो अमेरिका विश्व का सबसे पुराना लोकतंत्र। करीब 200 वर्ष पहले 1804 में यहां चुनाव की शुरुआत हुई। पहले उपराष्ट्रपति का चुनाव भी इलेक्टोरल कॉलेज ही करता था। लेकिन तब अलग-अलग मत नहीं डाले जाते थे। उस समय जिसे सबसे ज्यादा वोट मिलते थे, वह राष्ट्रपति बनता था। और दूसरे नंबर पर रहने वाला व्यक्ति उपराष्ट्रपति निर्वाचित होता था। यहां हर चार साल में चुनाव होते हैं।
अमेरिकी संसद
भारत की तरह अमेरिकी संसद में भी दो सदन होते हैं। पहला हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव, जिसे प्रतिनिधि सभा भी कहा जाता है। इसके सदस्यों की संख्या 435 है। दूसरे सदन सीनेट में 100 सदस्य होते हैं। इसके अतिरिक्त अमेरिका के 51वें राज्य कोलंबिया से तीन सदस्य आते हैं। इस तरह संसद में कुल 538 सदस्य होते हैं।
द्विदलीय व्यवस्था
अमेरिकी लोकतंत्र में द्विदलीय राजनीतिक व्यवस्था है। इसलिए त्रिशंकु संसद का खतरा भी नहीं होता। रिपब्लिकन और डेमोक्रेट यहां दो प्रमुख पार्टियां हैं। अन्य दलों का यहां कोई वजूद नहीं है। राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार सबसे पहले एक समिति बनाते हैं। जो चंदा इकट्ठा करने और संबंधित नेता के प्रति जनता का रुख भांपने का काम करती है। कई बार यह प्रक्रिया चुनाव से दो साल पहले ही शुरू हो जाती है।
अमेरिका के राष्ट्रपति की योग्यता
अमेरिका में राष्ट्रपति बनने के लिए आवश्यक है कि व्यक्ति का जन्म अमेरिका में हुआ हो। और वह 14 साल से देश में रह रहा हो। उसकी आयु कम से कम 35 वर्ष होनी चाहिए। साथ ही राष्ट्रपति को अंग्रेजी भाषा आना भी आवश्यक है।
राष्ट्रपति का चुनाव 538 इलेक्टर्स करते हैं। राष्ट्रपति बनने के लिए कम से कम 270 इलेक्टोरल मत हासिल करना आवश्यक होता है। अमेरिकी कानून के मुताबिक राष्ट्रपति पद के दो कार्यकाल के बाद कोई भी व्यक्ति तीसरी बार चुनाव नहीं लड़ सकता।