Vaidya: पुस्तक समीक्षा : रस्सी पर चलती लड़की ( कविता संग्रह ), कवि : भगवान वैद्य। प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, एफ-77, सेक्टर 9, रोड नं. 11, करतारपुरा इंडस्ट्रियल एरिया, बाईस गोदाम, जयपुर-302006, मूल्य ₹ 150, फोन: 9829018087।
Vaidya: कवि भगवान वैद्य की कविताओं में जिजीविषा के स्वर
राजीव कुमार झा
Vaidya: अमरावती के वरिष्ठ हिंदी कवि भगवान वैद्य की कविताओं में समय और समाज की विषम परिस्थितियों के साथ मनुष्य की जिजीविषा के स्वर अभिव्यक्ति के नये धरातल को निरंतर गढ़ते प्रतीत होते हैं। इनमें कवि वर्तमान जीवन की चतुर्दिक विडंबनाओं का सहजता से सामना करता दिखायी देता है।
कविता की रचना प्रक्रिया में यथार्थ को जीवन के मूल तत्व के रूप में इसकी रचना का प्रमुख उपादान माना जाता है। और इसके अन्य रचनात्मक तत्वों में कल्पना के मेल से कविता के फलक पर कवि की उजागर होती जीवन चेतना को निरंतर काव्य स्वर के रूप में देखा जाता है।
कविता की सार्थकता
Vaidya: अभिव्यक्ति के इसी धरातल पर कविता अपनी सार्थकता को प्रमाणित भी करती है और किसी संवाद की तरह से विमर्श भी करती दिखायी देती है। भगवान वैद्य के काव्य लेखन की विशिष्टता को इस प्रकार देखना-समझना समीचीन होगा और उनके इस प्रस्तुत कविता संग्रह की तमाम कविताओं में बदलते सामाजिक परिवेश के साथ समाज और संस्कृति के बीच उभरते संकट को निकट से देखने की चेष्टा समाहित है।
मानवीय संस्पर्श से निरंतर दूर होते आत्मीय संबंधों में पसरते अलगाव और उदासी की धुंध में मन की चमक यहां फीकी होती प्रतीत होती है। जीवन के यथार्थ को इसी प्रसंग में इन कविताओं के राग-विराग में प्रवाहित देखा जा सकता है।
जीवन के गहरे पाठ का रूप
यहां कविता जीवन को फिर से रचने के उत्स में शरीक होती सामने आती है। और जो कुछ भी जीवन की यात्रा में पीछे छूटता जा रहा है, उसको समेटने के साथ जीवन में समाने वाली हर नयी चीज का गहरा मंथन करती कविता को जीवन के गहरे पाठ का रूप प्रदान करती है-
‘एक शब्दचित्र उभर रहा था। स्क्रिन पर, हौले-हौले। पर एक गलत ‘क्लिक’ से। सब ‘डिलिट’ हो गया। तुमने कहा, ‘सेव’ करने की आदत डालो। अगली बार मैंने वैसे…सदियों से कविता मनुष्य के मन की सच्ची गुनगुनाहट के रूप में उसकी आत्मा के स्वर से जीवन के राग को स्पंदित करती रही है।
बेहद उदासी और चुप्पी
इसमें उसका रास्ता यहां इस संग्रह की कविताओं में बेहद उदासी और चुप्पी से भरे किनारों के अलावा भीड़भाड़ कोलाहल और ऐसी हलचल से भरी जगहों से होकर भी गुजरता साकार होता है जिसके विचलन के साक्ष्य के तौर पर इन कविताओं को पढ़ना खास तौर पर प्रासंगिक है।
हमारी सभ्यता के भौतिक तानेबाने में संस्कृति के संवाद के रूप में लिखी गयी इन कविताओं में हृदय के विस्मृत होती नैसर्गिक आहट की तलाश में भटकता कवि मन यहां घर परिवार में कायम होते संकटों से लेकर जनजीवन और सरकार जीवन के इन सुदूर विस्तृत ओर छोर का स्पर्श करता सबको अभिभूत करता है-
सड़क की अधिकाधिक दूरी
‘वे यथाशीघ्र नाप लेना चाहते हैं। अपने बूढ़े कदमों से। सड़क की अधिकाधिक दूरी। आँखों में भर लेना चाहते हैं। भगवान वैद्य के इस काव्य संग्रह की कविताओं में यांत्रिक सभ्यता की संस्कृति से उपजे संत्रास और इसके फैलाव में संकट से घिरते जीवन संसार के यथार्थ को कवि ने आज की प्रचलित भाषा और जीवन के नये बिंबों और प्रतीकों के माध्यम से प्रकट किया है।
इसलिए इन कविताओं को रचनात्मक हस्तक्षेप की तरह से देखा जाना चाहिए। और कवि यहाँ विकट समय और परिस्थितियों की आहट को सुनता उसका समुचित सामना करता सबको संबल देता है। इसलिए ये कविताएं जीवनधर्मी कविताओं की कोटि में अपनी पहचान को दर्ज करती हैं। और किसी अनंतिम लड़ाई के लिए मनुष्य की आत्मा को सहज शब्दों से प्रेरित करती हैं-
सारा ही मत भर लो झोली में
‘सारा ही मत भर लो झोली में। छोड़ दो भूमि पर दानें चार। वही बिखरेंगे नयी ऊर्जा। वही खोलेंगे नव सृजन द्वार। ‘इस संग्रह की कविताएं जीवन के द्वंद्व में संकट के उमड़ते बादलों के नीचे उदासी से घिरी धरती के गर्भ में समाये जीवन के सुंदर सपनों की तरह से किसी नींद में दस्तक देती प्रतीत होती हैं-
‘नदी के तट पर बैठा वह चित्रकार। जिसकी तूलिका से बिखरे रंग। दुनिया की हर भाषा में बतियाते थे। पाषाणों से घिरा वह शिल्पकार जो पत्थरों के गर्भ से मूर्तियों को निकालकर उनमें प्राण फूँकता था। प्यास की कविताओं में शब्दों की आवाजाही में खामोशी किसी जटिल सवाल की तरह खामोशी को कायम करते कवि के मनोभाव मौन संकल्प की तरह से जीवन को नये आकार में इसी तरह गढ़ते दिखायी देते हैं।