
कहते हैं राजनीति में कोई भी स्थायी रूप से दोस्त या दुश्मन नहीं होता। देश, काल और परिस्थिति के अनुसार रिश्ते बदलते रहते हैं। दुनिया की बात करें तो वह हमेशा उगते सूरज को प्रणाम करती है। महाशक्तियों पर यह बात सटीक बैठती है। भारत की बात करें तो उसके सामने एक बड़ा सवाल है कि वह किधर जाए।
अमेरिका से दोस्ती निभाए या ईरान से संबंध खराब करे। वैसे भी अमेरिका के दबाव में आकर भारत को महंगा पेट्रोलियम खरीदना पड़ रहा है। जबकि ईरान उसे सस्ता पेट्रोलियम उपलब्ध करा रहा था। अमेरिका के चक्कर में भारत को व्यापारिक नुकसान सहना पड़ रहा है।
चीन से रिश्ते क्यों तेजी से खराब हुए, इसका भी एक बड़ा कारण अमेरिका हो सकता है। जैसे जैसे भारत अमेरिका के नजदीक होता गया, चीन से रिश्ते बिगड़ते चले गए। अगर भारत और चीन को व्यापारिक नजरिये से देखा जाए तो चीन मैन्यूफैक्चरिंग के क्षेत्र में उगते सूरज की तरह आगे बढ़ रहा है। भारत मेडिकल, ट्रांसक्रिप्शन, अनुवाद और सिनेमा जैसे सेवा के क्षेत्रों में झंडे गाड़ चुका है। दोनों देशों की अपने अपने क्षेत्र की विशेषताएं दुनिया के व्यापारिक पटल पर पैठ बनाने में सहायक हैं।
सवाल यह है कि भारत और चीन दुनिया के व्यापारिक जगत में अभ्युदय तलाशने के बजाय आपस में लड़ क्यों रहे हैं। चीन के बारे में यह धारणा बन चुकी है कि उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। इसी प्रकार चीन सोचता है कि भारत और अमेरिका मिल कर उसके लिए खतरा बन सकते हैं। कुल मिला कर भरोसे का संकट है।
आपको याद दिला दें कि एक समय भारत में निर्गट आंदोलन का बिगुल बजाया गया था। उस समय दुनिया की महाशक्तियों में शीत युद्ध चल रहा था। भारत के निर्गुट आंदोलन को अमेरिका ने धृष्टता करार दिया था। ऐसा शायद इसलिए था कि अमेरिका मानता है कि आप हमारे मित्र नहीं हैं तो निश्चित रूप से आप हमारे दुश्मन हैं।
अब अमेरिका से दुश्मनी कौन मोल ले। इंदिरा गांधी के समय में भारत की अमेरिका से कभी नहीं पटी। 1971 के भारत—पाकिस्तान युद्ध में तो अमेरिका ने हमारे खिलाफ और पाकिस्तान की मदद में जहाजी बेड़ा तक भेज दिया था। उस समय सोवियत संघ ने साथ न दिया होता तो भारत पाकिस्तान से युद्ध हार सकता था।
यह बात भी विचार करने की है कि अमेरिका और चीन में कौन बड़ा साम्राज्यवादी है। रिकॉर्ड की बात करें तो पिछले 100 वर्षों में अमेरिका ने 26 युद्ध किए तो चीन ने मात्र छह युद्ध किए हैं। इन युद्धों में दोनो विश्व युद्ध शामिल नहीं हैं। युद्धों की खासियत यह रही है कि अमेरिका ने ज्यादातर युद्ध अपनी सरजमीं से दूर जा कर किए हैं तो चीन ने अपनी सीमाओं पर युद्ध किया है। इस दृष्टि से अमेरिका चीन से कहीं ज्यादा बड़ा साम्राज्वादी है।
यह भी बता देना जरूरी है कि भारत को किस नीति का अनुसरण करना चाहिए। भारत की देशी नीति है—न काहू से दोस्ती न काहू से बैर। भारत को किसी की साम्राज्यवादी नीति का पोषण नहीं करना चाहिए। उसे अपने पड़ोसियों से मतभेद दूर कर विकास की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए।
अगर भारत अमेरिका की इच्छा की ज्यादा फिक्र करेगा तो वह उसे युद्धोन्माद में झोंक कर अपना हथियार बेचता रहेगा। भारतीय जनता को भी युद्ध के लिए सरकार पर दबाव नहीं बनाना चाहिए। लोग युद्ध चाहेंगे तो सरकार उसमें पीछे नहीं हटेगी, क्योंकि उसे चुनाव मैदान में भी अपने विरोधियों से दो दो हाथ करना होता है।