
Vulture Politics: आज पांच राज्यों के चुनाव के परिणाम सामने आने हैं। लेकिन एक खास पार्टी के समर्थक गिद्ध से डरे हुए हैं। शायद उन्हें नहीं पता कि गिद्ध मरे हुए प्राणी का मांस खाता है, जीवित प्राणी का नहीं। ऐसा उदाहरण सामने नहीं आया है कि गिद्ध ने किसी जीवित प्राणी को मार कर खाया हो। हालांकि पाम नट वल्चर (गिद्ध) कई तरह के अखरोट, अंजीर, मछली और कभी कभी पक्षियों को भी खाता है।
Vulture Politics: सरकार से सवाल पूछने वाले पत्रकारों की तरह गिद्ध लुप्तप्राय
श्रीकांत सिंह
नई दिल्ली। Vulture Politics: जिस प्रकार सरकार से सवाल पूछने वाले पत्रकारों की प्रजाति लुप्तप्राय है, ठीक उसी प्रकार गिद्ध प्रजाति का पक्षी भी लुप्तप्राय है। फिर लुप्तप्राय प्राणी से डर कैसा? लेकिन बदस्तूर गिद्ध से डरा और डराया जा रहा है। और गिद्ध को अपमानित किया जा रहा है।
राम कथा में गिद्ध को बहुत सम्मानित ढंग से चित्रित किया गया है। जटायु की कथा आपने सुनी ही होगी, जिसने सीता जी को रावण के चंगुल से बचाने के प्रयास में अपने प्राणों की बाजी लगा दी थी। भगवान राम को गिद्ध के खानपान से कोई आपत्ति नहीं थी। लेकिन उन्हीं के तथाकथित भक्त गिद्ध की ऐसी छवि बना रहे हैं, जैसे गिद्ध कोरोना वायरस हो।
आश्चर्य है कि वही तथाकथित भक्त प्राणघातक कोरोना से नहीं डर रहे हैं। वे बाकायदा रैलियों के जरिये जनसमूह जुटाते हैं और कोरोना प्रोटोकाल को दरकिनार कर देते हैं। उलटे कुतर्क करने लगते हैं कि महाराष्ट्र में तो चुनाव नहीं हो रहे हैं, फिर वहां कोरोना क्यों फैल रहा है?
को कहि सकै बड़ेन को?
Vulture Politics: अब उन्हें कौन समझाए कि बात यह नहीं है कि कहां कोरोना का कितना प्रसार हो रहा है। बात कोरोना प्रोटोकाल की है। यदि कोरोना प्रोटोकाल महत्वपूर्ण नहीं है तो देश भर में अलग अलग समय पर लॉकडाउन क्यों लगाया जा रहा है। लोगों को सरेआम रोड पर बेरहमी से क्यों पीटा गया? लेकिन को कहि सकै बड़ेन को?
कोरोना प्रोटोकाल का उल्लंघन किसी साधारण व्यक्ति ने नहीं, देश के प्रधानमंत्री और केंद्रीय मंत्रियों ने किया है। चुनाव आयोग ने कोरोना प्रोटोकाल का उल्लंघन होने दिया है। शायद यही वजह है कि मद्रास हाईकोर्ट ने इन देश के कर्णधारों पर कठोर टिप्पणी की थी। उसी टिप्पणी पर सत्तासीन पार्टी की छवि खराब हुई है।
अब डैमेज कंट्रोल चल रहा है। तर्क कुतर्क के बाण चलाए जा रहे हैं। और इस तर्क कुतर्क के बीच पिस रहा है बेचारा गिद्ध। जबकि वह इन्नोसेंट प्राणी है। उसने किसी का अहित नहीं किया है। अलब्त्ता वह स्वच्छ भारत मिशन का पहला सूत्रधार रहा है। खुले में मरे हुए पशु जो फेंक दिए जाते थे, वहां की सफाई का जिम्मा गिद्ध के ही पास होता था।
लुप्तप्राय प्राणी के नाम पर राजनीति
लेकिन अब इस लुप्तप्राय प्राणी के नाम पर राजनीति शुरू हो गई है। देश की स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल उठा दें तो आप गिद्ध करार कर दिए जाएंगे। और सरकार की ओर से कोरोना प्रोटोकाल के उल्लंघन को चुनावी रणनीति बता दें तो आपको सिद्ध कहा जाएगा।
एक्जिट पोल के परिणाम भी अपनी अपनी सुविधा के अनुसार बताए जा रहे हैं। विश्लेषण की बात करें तो बताया जा रहा है कि एक खास पार्टी चुनाव जीतने में सिद्धहस्त है। इसलिए ज्यादातर प्रदेशों में उसी की सरकार बनेगी।
समझ में नहीं आता कि चुनाव परिणाम से पहले इस तरह के प्रलाप से किसको क्या फायदा हो सकता है? कोरोना महामारी के संदर्भ में यदि इसी तरह की झूठी भविष्यवाणी कर दी जाती तो लोगों का आत्मविश्वास जगता और उनकी जान बच जाती।
किसे आता है किसानों की मौतों में आनंद
लेकिन ये तथाकथित सिद्ध लोग मतलब की बात करते कहां हैं? उन्हें तो दिल्ली बार्डर पर किसानों की मौतों में आनंद आता है। किसान आंदोलन को असफल करार देने में आनंद आता है। जबकि अपनी फसलों को कारपोरेट के चंगुल से बचाने में किसान जटायू की भूमिका में हैं। यह बताना जरूरी है कि फसल का एक नाम सीता भी है।
जय श्रीराम के नारों से चुनाव मैदान में उतरने वाली पार्टी के समर्थक आखिर जटायू के कर्म को क्यों भुला बैठे हैं? क्यों जटायू की संतति को हिकारत भरे शब्दों से नवाज रहे हैं? अगर आप गिद्ध को जटायू की संतति नहीं मानते, तो भी उसका महत्व कम नहीं है।
गिद्ध ईको सिस्टम के लिए ज़रूरी
गिद्ध एक ऐसा बदसूरत पक्षी है जिसकी खानपान की आदतें पारिस्थितिकी तंत्र या ईको सिस्टम के लिए ज़रूरी हैं। लेकिन इसके लिए उसे श्रेय शायद ही दिया जाता हो। उलटे इस पक्षी का एक नकारात्मक बिंब तैयार किया जाता है। यह कार्य पक्षी यानी पक्षपातपूर्ण पत्रकारिता कर रही है।
साइमन थॉमसेट जैसे संरक्षणवादी इन पक्षियों की दुर्दशा को लेकर जागरुकता लाने का काम कर रहे हैं। वो गिद्धों के अनूठे गुणों को बताकर हमारे नज़रिये को बदलने के लिए भी काम कर रहे हैं। गिद्ध के कुछ गुणों के बारे में जानते हैं।
गिद्ध भर सकते हैं 37 हजार फुट ऊंची उड़ान
गिद्ध सबसे ऊंची उड़ान भरने वाला पक्षी है। इसकी सबसे ऊंची उड़ान को रूपेल्स वेंचर ने 1973 में आइवरी कोस्ट में 37 हजार फीट की ऊंचाई पर रिकॉर्ड किया था, जब इसने एक हवाई जहाज को प्रभावित किया था। ये ऊंचाई एवरेस्ट (29,029 फीट) से काफ़ी अधिक है। और इतनी ऊंचाई पर ऑक्सीजन की कमी से ज़्यादातर दूसरे पक्षी मर जाते हैं।
थॉमसेट के मुताबिक, गिद्ध को लेकर हुए अध्ययनों से उनके हीमोग्लोबिन और दिल की संरचना से संबंधित कई ऐसी विशेषताओं के बारे में पता चला, जिनके चलते वो असाधारण वातावरण में भी सांस ले सकते हैं। गिद्ध भोजन की तलाश में एक बड़े इलाक़े पर नज़र डालने के लिए अक्सर ऊंची उड़ान भरते हैं। गिद्ध बीमारियों को फैलने से रोकने के साथ ही जंगली कुत्तों जैसे अन्य मुर्दाख़ोरों की संख्या को सीमित रखने में भी मददगार साबित होते हैं।
निष्कर्ष
Vulture Politics: खैर, गिद्ध के बारे में हम चाहें जैसी भी राय रखते हों, लेकिन उनके बारे में एक बात तो साफ़ है कि वो ख़तरे में हैं। पिछले एक दशक के दौरान भारत, नेपाल और पाकिस्तान में उनकी तादात में 95 प्रतिशत तक की कमी आई है और ऐसे ही रुझान पूरे अफ्रीका में देखे गए हैं। ये पक्षी जिन शवों को खाते हैं, उससे उनके शरीर में ज़हर पहुंच रहा है।
कुछ लोग मानते हैं कि जानवरों को दी जाने वाली दवाओं के कारण ऐसा हो रहा है। जबकि दूसरे लोग मानते हैं कि नियमों को ताक पर रखकर किए जा रहे शिकार के कारण इनकी संख्या घट रही है। इनका शिकार इसलिए भी किया जा रहा है ताकि ये गैंडों और हाथियों की मौत के बारे में चेतावनी न दे सकें। सरकार से सवाल पूछने वाले पत्रकारों का भी शिकार इसीलिए किया जाता है कि वे सरकार की दोषपूर्ण नीतियों के बारे में चेतावनी न दे सकें। आलेख कैसा लगा? कमेंट कर जरूर बताएं।