श्रीकांत सिंह
नई दिल्ली। देश में इस समय एमएसपी यानी किसानों की उपज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की सियासत सिर चढ़ कर बोल रही है। कृषि विधेयकों के संदर्भ में विपक्ष ने दो बड़े आरोप केंद्र सरकार पर लगाए हैं। पहला नए कानून के जरिये एमएसपी को समाप्त कर दिया जाएगा और दूसरा कृषि विधेयकों को राज्यसभा में पास कराते समय नियमों की अनदेखी की गई।
विपक्ष का दावा है कि ध्वनिमत से कृषि विधेयकों को पास कराना नियम विरुद्ध है। क्योंकि एक भी सांसद विधेयकों पर वोटिंग की मांग कर दे तो किसी भी विधेयक को ध्वनिमत से पास नहीं कराया जा सकता। यहां तो केंद्र सरकार की ही मंत्री ने विधेयकों के विरोध में इस्तीफा तक दे रखा है। ऐसे में वोटिंग कराए बगैर ध्वनिमत से विधेयकों को पास कराना लोकतंत्र की हत्या है।
विरोध की हुंकार से दबाव में सरकार
देश भर में विरोध की हुंकार से लगता है कि केंद्र सरकार दबाव में आ गई है। क्योंकि किसान बिलों पर हंगामे के बीच मोदी सरकार ने गेहूं समेत 6 फसलों की एमएसपी बढ़ा दी है। जाहिर है कि कृषि बिलों पर सड़क से लेकर संसद तक हंगामे का शोर सरकार के कानों तक पहुंच चुका है और वह अपने बचाव का रास्ता निकालने में लगी है।
खरीद वर्ष 2021-22 में अब गेहूं का रेट 1975 रुपये प्रति कुंतल होगा, जो पिछले साल के मुकाबले महज 2.6 फीसदी बढ़ा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने गेहूं, जौ, चना, सरसों, मसूर और कुसुम के न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि के फैसले को मंजूरी दे दी है।
नई दरों के मुताबिक, सबसे ज्यादा 300 रुपये प्रति कुंतल मसूर और सरसों में 225 रुपये प्रति कुंतल की बढ़ोतरी की गई है। कुसम 112 रुपये प्रति कुंतल, जौ में 75 रुपये प्रति कुंतल और गेहूं की दरों में 50 रुपये प्रति कुंतल की बढ़ोतरी हुई है। न्यूनतम समर्थन मूल्य (एममएसपी) वह भाव है, जिस पर सरकार किसानों से फसल उन्हें ज्यादा लाभ देने के नाम पर खरीदती है।
छोटे बिचौलिये हटेंगे तो आ जाएंगे बड़े बिचौलिये
पूरा मामला इसी एमएसपी को लेकर है। सरकार का दावा है कि कृषि में लाए जा रहे बदलावों से किसानों की आमदनी बढ़ेगी। उन्हें नए अवसर मिलेंगे। बिचौलिये खत्म होंगे, सबसे ज्यादा फायदा छोटे किसानों को होगा, लेकिन किसान संगठन और विपक्ष का कहना है ये किसानों के हित में नहीं है। खेती और मंडियों पर बड़ी-बड़ी कॉरपोरेट कंपनियां हावी हो जाएंगी। छोटे बिचौलिये हटेंगे तो बड़े बिचौलिये सक्रिय हो जाएंगे।
लेकिन एमएसपी में और भी बड़े झोल हैं। दावा किया जाता है कि मात्र 6 प्रतिशत किसान अपनी उपज एमएसपी पर बेच पाते हैं। यह एमएसपी भ्रष्टाचार को भी हवा देता है। अधिकारी एमएसपी पर किसानों की उपज खरीदने में आनाकानी करते हैं। वे भंडारण की पर्याप्त व्यवस्था न होने का बहाना बना कर किसानों को लौटा देते हैं और मंडी से सस्ते में अनाज खरीद कर उसे सरकारी खरीद में दिखा कर मार्जिन का फायदा खुद उठा लेते हैं। इस खेल में अधिकारी करोड़ों रुपये का वारा न्यारा कर लेते हैं और किसान एमएसपी के लाभ से वंचित रह जाता है।
मांग और आपर्ति में संतुलन जरूरी
तो फिर समाधान क्या है? दरअसल, मार्केट मांग और पूर्ति पर आधारित है। मार्केट में जिस उत्पाद की उपलब्धता अधिक होती है, स्वाभाविक रूप से उसका रेट गिर जाता है। उस पर एमएसपी को कितना भी बढ़ा दिया जाए, भ्रष्टाचार किसानों का हक निगल ही जाता है। सरकार को मांग और आपूर्ति का संतुलन बनाए रखने पर काम करना चाहिए। तब एमएसपी की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।
इसे इस तरह समझ सकते हैं। मान लीजिए पिछले वर्ष प्याज की कीमत 200 रुपये प्रति किलो रही। जाहिर है कि किसान इस वर्ष प्याज की खेती की ओर आकर्षित होंगे। होगा यह कि गुजरात के किसान दबा कर प्याज की खेती करेंगे। देश के दूसरे प्रदेश इसमें कहां पीछे रहने वाले हैं? और पूरे देश में प्याज की फसल की भरमार हो जाएगी। मांग के मुकाबले आपूर्ति कई गुना बढ़ जाएगी। परिणाम यह होगा कि प्याज का रेट गिर कर 10 रुपये प्रति किलो पर आ जाएगा और उसका नुकसान किसानों को ही झेलना पड़ेगा।
किसानों को जागरूक कर सकती है सरकार
सरकार को क्या करना चाहिए? सरकार चाहे तो मीडिया के जरिये किसानों को जागरूक करे कि गुजरात में व्यापक पैमाने पर प्याज की खेती हो रही है। इसलिए दूसरे प्रदेशों के किसान प्याज के बजाय लहसुन की खेती कर सकते हैं, जिससे मांग और आपूर्ति का संतुलन बना रहे और किसान की उपज के रेट न गिरें। लेकिन मीडिया की प्राथमिकता में रिया और सुशांत होते हैं। उसे खेती किसानी की खबर दिखाने की फुर्सत ही कहां है?
इस समस्या के समाधान के लिए सरकार कोई ऐसा ऐप जारी कर सकती है, जो किसानों को इस संदर्भ में अपडेट करता रहे और किसान बाजार के अनुकूल अपना फसल चक्र तैयार कर सकें। यह देश के किसानों का दुर्भाग्य ही है कि कारपोरेट जगत अपने उत्पाद पर एमआरपी का ठप्पा लगा देता है और उसी रेट पर सभी को उत्पाद खरीदना पड़ता है।
लेकिन किसान एमएसपी के रहमोकरम का इंतजार करता रह जाता है। सरकार जब तक खेती किसानी की व्यवस्था पर फोकस नहीं करेगी, तब तक किसानों के अच्छे दिन नहीं आ पाएंगे। भले ही एमएसपी को कितना भी क्यों न बढ़ा दिया जाए। इस बार कृषि बिलों पर हंगामे से सरकार ने सबक न लिया तो किसानों का असंतोष और भी बढ़ सकता है।