श्रीकांत सिंह
नई दिल्ली। राज्यसभा में कृषि विधेयक जबरन पास तो कर दिए गए, लेकिन किसानों के सवालों के जवाब नहीं मिल पाए हैं। सरकार यह संदेश देने में कामयाब हुई है कि सत्ता तानाशाही पर उतर आए तो कुछ भी कर सकती है। भले उसका किसी भी स्तर पर विरोध क्यों न हो रहा हो। भले ही उसके अपने ही क्यों न रूठ जाएं। लेकिन किसानों के सवालों के जवाब सरकार को देने ही होंगे। सरकार को बताना ही होगा कि कैसे किसानों की दशा सुधारेगी?
अगर सरकार की MSP को लेकर नीयत साफ है तो वो मंडियों के बाहर होने वाली ख़रीद पर किसानों को MSP की गारंटी दिलवाने से क्यों इंकार कर रही है? MSP से कम ख़रीद पर प्रतिबंध लगाकर, किसान को कम रेट देने वाली प्राइवेट एजेंसी पर क़ानूनी कार्रवाई की मांग को सरकार खारिज क्यों कर रही है?
कोरोना काल काल के बीच इन तीन क़ानूनों को लागू करने की मांग कहां से आई? ये मांग किसने की? किसानों ने या औद्योगिक घरानों ने? देश-प्रदेश का किसान मांग कर रहा था कि सरकार अपने वादे के मुताबिक स्वामीनाथन आयोग के सी2 फार्मूले के तहत MSP दे, लेकिन सरकार ठीक उसके उलब् बिना MSP प्रावधान के क़ानून लाई है।
आख़िर इसके लिए किसने मांग की थी? प्राइवेट एजेंसियों को अब किसने रोका है किसान को फसल के ऊंचे रेट देने से? फिलहाल प्राइवेट एजेंसीज मंडियों में MSP से नीचे पिट रही धान, कपास, मक्का, बाजरा और दूसरी फसलों को MSP या MSP से ज़्यादा रेट क्यों नहीं दे रहीं?
उस स्टेट का नाम बताइए जहां पर हरियाणा-पंजाब का किसान अपनी धान, गेहूं, चावल, गन्ना, कपास, सरसों, बाजरा बेचने जाएगा? जहां उसे हरियाणा-पंजाब से भी ज्यादा रेट मिल जाएगा?जमाखोरी पर प्रतिबंध हटाने का फ़ायदा किसको होगा-किसान को, उपभोक्ता को या जमाखोर को? क्या बताएगी सरकार?
सरकार नए क़ानूनों के ज़रिये बिचौलियों को हटाने का दावा कर रही है, लेकिन किसान की फसल ख़रीद करने या उससे कॉन्ट्रेक्ट करने वाली प्राइवेट एजेंसी, अडानी या अंबानी को सरकार किस श्रेणी में रखती है-उत्पादक, उपभोक्ता या बिचौलिया?
जो व्यवस्था अब पूरे देश में लागू हो रही है, लगभग ऐसी व्यवस्था तो बिहार में 2006 से लागू है। तो बिहार के किसान इतना क्यों पिछड़ गए? बिहार या दूसरे राज्यों से हरियाणा में BJP-JJP सरकार के दौरान धान जैसा घोटाला करने के लिए सस्ते चावल मंगवाए जाते हैं। तो सरकार या कोई प्राइवेट एजेंसी हमारे किसानों को दूसरे राज्यों के मुकाबले अच्छा रेट कैसे देगी?
टैक्स के रूप में अगर मंडी की इनकम बंद हो जाएगी तो मंडियां कितने दिन तक चल पाएंगी?
क्या रेलवे, टेलीकॉम, बैंक, एयरलाइन, रोडवेज, बिजली महकमे की तरह घाटे में बोल कर मंडियों को भी निजी हाथों में नहीं सौंपा जाएगा?
अगर ओपन मार्केट किसानों के लिए फायदेमंद है तो फिर “मेरी फसल मेरा ब्योरा” के ज़रिये क्लोज मार्केट करके दूसरे राज्यों की फसलों के लिए प्रदेश को पूरी तरह बंद करने का ड्रामा क्यों किया? हरियाणा सरकार ने प्रदेश में 3 नए कानून लागू कर दिए हैं तो फिर मुख्यमंत्री खट्टर किस आधार पर कह रहे हैं कि वह दूसरे राज्यों से हरियाणा में मक्का और बाजरा नहीं आने देंगे?
अगर सरकार सरकारी ख़रीद को बनाए रखने का दावा कर रही है, तो उसने इस साल सरकारी एजेंसी FCI की ख़रीद का बजट क्यों कम दिया? वो ये आश्वासन क्यों नहीं दे रही कि भविष्य में ये बजट और कम नहीं किया जाएगा?
जिस तरह से सरकार सरकारी ख़रीद से हाथ खींच रही है, क्या इससे भविष्य में ग़रीबों के लिए जारी पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम में भी कटौती होगी? क्या राशन डिपो के माध्यम से जारी पब्लिक डिस्ट्रीब्युशन सिस्टम, ख़रीद प्रक्रिया के निजीकरण के बाद अडानी-अंबानी के स्टोर के माध्यम से प्राइवेट डिस्ट्रीब्युशन सिस्टम बनने जा रहा है?
कृषि विधेयक पर राज्यसभा में जो भी हुआ, उससे देश शर्मसार हुआ है। उप सभापति हरिवंश 20 सितंबर को कृषि विधेयकों के पारित होने के दौरान विपक्षी सांसदों के सदन में उनके साथ अनियंत्रित व्यवहार के खिलाफ एक दिवसीय उपवास का पालन करेंगे।
उन्होंने इसको लेकर सभापति को एक पत्र लिखा और कहा कि सांसदों के व्यवहार से वे मानसिक वेदना में हैं और पूरी रात सो नहीं पाए। उन्होंने पत्र में लिखा, ‘राज्यसभा में जो कुछ हुआ, उससे पिछले दो दिनों से गहरी आत्म पीड़ा, तनाव और मानसिक वेदना में हूं। मैं पूरी रात सो नहीं पाया।’ सदन के सदस्यों की ओर से लोकतंत्र के नाम पर हिंसक व्यवहार हुआ।
आसन पर बैठे व्यक्ति को भयभीत करने की कोशिश हुई। उच्च सदन की हर मर्यादा और व्यवस्था की धज्जियां उड़ाई गईं। सदन में सदस्यों ने नियम पुस्तिका फाड़ी। मेरे ऊपर फेंका। नीचे से कागज को रोल बनाकर आसन पर फेंके गए। आक्रामक व्यवहार, भद्दे और असंसदीय नारे लगाए गए। गांव का आदमी हूं, मुझे साहित्य, संवेदना और मूल्यों ने गढ़ा है।