इंफोपोस्ट डेस्क, नयी दिल्ली। Women Reservation Bill:
नयी संसद में पहला दिन बेहद खास रहा। मोदी सरकार ने वह ट्रंप कार्ड चल दिया है जिसकी काट आइएनडीआइए गठबंधन के पास न हो। महिला आरक्षण बिल सरकार ने संसद में पेश कर दिया है। यह भाजपा के लिए 24 के चुनाव में मील का पत्थर साबित हो सकता है। माना जा रहा है कि भाजपा ने आधी आबादी को सम्मान देकर अपने लिए लोकसभा चुनाव की नैया पार करने का बंदोबस्त कर लिया है। कांग्रेस ने बिल का समर्थन करते हुए इसे अपनी पार्टी की जीत बताया है। हालांकि कांग्रेस यह नहीं बता पाई कि यह बिल उसका था तो इतने वर्षों बाद तक उसे पास क्यों नहीं किया जा सका।
Women Reservation Bill:भारत सरकार ने संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित करने के लिए बिल पेश कर दिया है। लोकसभा में महिलाओं को आरक्षण देने वाले ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ के लिए संवैधानिक संशोधन का प्रस्ताव पेश किया गया है।
बिल के तहत लोकसभा के अलावा राज्यों की विधानसभाओं में भी आरक्षण का प्रावधान है। बिल के प्रावधान के मुताबिक लोकसभा या विधानसभाओं मौजूदा एससी-एसटी आरक्षण में भी 33 फ़ीसदी हिस्सेदार महिलाओं की होगी।
संसद में अभी 82 महिला सांसद हैं
ये बिल सीधे जनता द्वारा चुने जाने वाले प्रतिनिधियों पर ही लागू होगा। इसका मतलब है कि ये आरक्षण राज्यसभा या विधान परिषदों पर लागू नहीं होगा। साथ ही सीटों पर आरक्षण भी रोटेशन के आधार पर होगा और हर परिसीमन के बाद सीटें बदली जा सकेंगी।
ये बिल पहली बार 27 वर्ष पहले पेश किया गया था लेकिन तब ये पास नहीं हो पाया था। सोमवार शाम को दिल्ली में हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में इस बिल को मंज़ूरी दे दी गई थी।
एक सपना पूरा होने जैसा : मोदी
प्रधानमंत्री मोदी ने बिल पेश करने को एक सपने के पूरा होने जैसा बताया है। उन्होंने कहा है कि महिलाओं के विकास के लिए सिर्फ़ बातें बनाना ही काफ़ी नहीं है। महिला आरक्षण का मुद्दा वर्ष 2014 और वर्ष 2019 में बीजेपी के संकल्प पत्र के वादों में शामिल रहा है।
पवित्र काम के लिए ईश्वर ने मुझे चुना
लोकसभा में बिल पास होने के बाद प्रधानमंत्री ने संसद में कहा कि महिलाओं को अधिकार देने के और ऐसे कई पवित्र काम के लिए ईश्वर ने उन्हें चुना है।
उन्होंने कहा , “आज 19 सितंबर की ये तारीख इसलिए इतिहास में अमरत्व को प्राप्त करने जा रही है। आज नए संसद भवन में सदन की पहली कार्यवाही के रूप में देश के इस नए बदलाव का आह्वान किया है।” उन्होंने कहा कि बिल का लक्ष्य लोकसभा और विधानसभा में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना है।
पीएम मोदी ने कहा, “सिर्फ महिलाओं के विकास की बात पर्याप्त नहीं है, हमें मानव जाति की विकास यात्रा में नए पड़ाव को अगर प्राप्त करना है, राष्ट्र की विकास यात्रा में नई मंजिलों को अगर पाना है तो ये आवश्यक है कि महिलाओं के नेतृत्व में विकास को हम बल दें।”
कांग्रेस ने किया स्वागत
कांग्रेस पार्टी के महासचिव जयराम रमेश ने सरकार के निर्णय का स्वागत किया है, लेकिन उन्होंने कहा है कि संसद का विशेष सत्र बुलाये जाने से पहले इस बारे में सर्वदलीय बैठक का आयोजन किया जाना चाहिए था।
उन्होंने कहा है कि इस बिल पर रहस्य की चादर डालने के बजाय, आम सहमति बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए था।
कांग्रेस के दूसरे वरिष्ठ नेता पी चिदंरबरम ने कहा कि बिल का पेश किया जाना कांग्रेस और यूपीए सरकार की जीत है।
दरअसल, यूपीए सरकार के दौरान भी ये बिल संसद में पेश किया गया था लेकिन तब इसे पारित करने का प्रयास विफल रहा था। बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती ने कहा है कि उनकी पार्टी महिला आरक्षण बिल का समर्थन करेगी।
96 से लटका हुआ था बिल
Women Reservation Bill: महिला आरक्षण बिल वर्ष 1996 से ही अधर में लटका हुआ है. उस समय एचडी देवगौड़ा सरकार ने 12 सितंबर 1996 को इस बिल को संसद में पेश किया था लेकिन ये पारित नहीं हो सका था. यह बिल 81वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में पेश हुआ था।
बिल में संसद और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फ़ीसदी आरक्षण का प्रस्ताव था। इस 33 फीसदी आरक्षण के भीतर ही अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए उप-आरक्षण का प्रावधान था। लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं था।
अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने 1998 में लोकसभा में फिर महिला आरक्षण बिल को पेश किया था। कई दलों के सहयोग से चल रही वाजपेयी सरकार को इसको लेकर विरोध का सामना करना पड़ा।
वाजपेयी सरकार ने इसे 1999, 2002 और 2003-2004 में भी पारित कराने की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हुई।
बीजेपी सरकार जाने के बाद 2004 में कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए सरकार सत्ता में आई और डॉक्टर मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने। यूपीए सरकार ने 2008 में इस बिल को 108वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में राज्यसभा में पेश किया। वहां यह बिल नौ मार्च 2010 को भारी बहुमत से पारित हुआ। बीजेपी, वाम दलों और जेडीयू ने बिल का समर्थन किया था।
यूपीए सरकार ने इस बिल को लोकसभा में पेश नहीं किया। इसका विरोध करने वालों में समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल शामिल थीं।
ये दोनों दल यूपीए का हिस्सा थे. कांग्रेस को डर था कि अगर उसने बिल को लोकसभा में पेश किया तो उसकी सरकार ख़तरे में पड़ सकती है।
Women Reservation Bill: साल में 2008 में इस बिल को क़ानून और न्याय संबंधी स्थायी समिति को भेजा गया था। इसके दो सदस्य वीरेंद्र भाटिया और शैलेंद्र कुमार समाजवादी पार्टी के थे।
इन लोगों ने कहा कि वे महिला आरक्षण के विरोधी नहीं हैं, लेकिन जिस तरह से बिल का मसौदा तैयार किया गया, वे उससे सहमत नहीं थे। इन दोनों सदस्यों ने सिफ़ारिश की थी कि हर राजनीतिक दल अपने 20 फ़ीसदी टिकट महिलाओं को दें और महिला आरक्षण 20 फ़ीसदी से अधिक न हो।
साल 2014 में लोकसभा भंग होने के बाद यह बिल अपने आप ख़त्म हो गया। लेकिन राज्यसभा स्थायी सदन है, इसलिए यह बिल अभी जिंदा है। अब इसे लोकसभा में नए सिरे से पेश किया गया है। राष्ट्रपति की मंज़ूरी के बाद यह क़ानून बन जाएगा। अगर यह बिल क़ानून बन जाता है तो 2024 के चुनाव में महिलाओं को 33 फ़ीसदी आरक्षण मिल जाएगा। इससे लोकसभा की हर तीसरी सदस्य महिला होगी।