
सत्य ऋषि
सत्य अनंत है। कण कण में व्याप्त है। हमारे देवी देवता उसी सत्य की सघन अभिव्यक्ति हैं। इसीलिए अलग अलग अवसरों पर हम देवी देवताओं की पूजा आराधना करते हैं। ऐसा ही एक अवसर है अनंत चतुर्दशी। भाद्रपद में शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को अनंत चतुर्दशी कहा जाता है। इसे अनंत चौदस भी कहते हैं।
भगवान विष्णु को समर्पित इस तिथि को व्रत रखकर भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा की जाती है। इसी दिन गणेश उत्सव का समापन भी होता है। अनंत चतुर्दशी मंगलवार, पहली सितंबर को है। जानते हैं पूजा विधि और उसके लिए शुभ मुहूर्त।
इस पूजा में धागों से बना अनंत धारण किया जाता है। पुरुष दाएं और स्त्रियां बाएं हाथ में अनंत धारण करती हैं। अनंत राखी के समान रूई या रेशम के कुंकू रंग में रंगे धागे होते हैं और उनमें चौदह गांठें होती हैं। इन्हीं धागों से अनंत का निर्माण होता है। यह व्यक्तिगत पूजा है, इसका कोई सामाजिक धार्मिक उत्सव नहीं होता।
सत्य हरि की पूजा करके अपने हाथ के ऊपरी भाग में या गले में धागा बांध कर या लटका कर व्रती अनंत व्रत को पूर्ण करता है। यदि हरि अनंत हैं तो 14 गांठें हरि से उत्पन्न 14 लोकों की प्रतीक हैं। अनंत चतुर्दशी पर कौण्डिन्य एवं उसकी स्त्री शीला की गाथा सुनाई जाती है। इसे कृष्ण ने युधिष्ठिर से कही थी।
‘अनंत’ उनके रूपों का एक रूप है और वे काल हैं जिसे अनंत कहा जाता है। अनंत व्रत चंदन, धूप, पुष्प, नैवेद्य के उपचारों के साथ किया जाता है। यह व्रत 14 वर्षों तक किया जाए, तो व्रती विष्णु लोक पा सकता है। इस दिन भगवान विष्णु की कथा होती है।
इसमें उदय तिथि ली जाती है। पूर्णिमा का सहयोग होने से इसका बल बढ़ जाता है। यदि मध्याह्न तक चतुर्दशी हो तो ज्यादा बेहतर है। जैसा इस व्रत के नाम से प्रतीत होता है कि यह दिन उस अंत न होने वाले सृष्टि के कर्ता ब्रह्मा की भक्ति का दिन है। इस व्रत की पूजा दोपहर में की जाती है।